ब्रिटेन : ’बाहरी‘ के लिए जगह नहीं

Last Updated 08 Sep 2022 01:33:42 PM IST

स्टॉर्मफ्रंट यूरोप की एक प्रभावी वेबसाइट है, जो श्वेत वर्चस्ववाद, श्वेत राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक श्रेष्ठता को स्थापित करने का संदेश देते हुए नस्लीय घृणा बढ़ाती है। इसे नवनाजी वेबसाइट भी कहा जाता है।


ब्रिटेन में बाहरी के लिए जगह नहीं

ब्रिटेन में इस वेबसाइट को पसंद करने वाले लोग बहुतायत में हैं, और उनमें से अधिकांश सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य हैं। भारतीय और अफ्रीकी नस्ल से जुड़े ऋषि सुनक कंजर्वेटिव पार्टी के नेता बनने की होड़ में थे। उन्हें कंजर्वेटिव पार्टी के सांसदों का समर्थन भी प्राप्त था लेकिन जब यह वोटिंग कार्यकर्ताओं से हुई तो वे बूरी तरह से चुनाव हार गए और देश की नई प्रधानमंत्री के तौर पर लिज ट्रस की ताजपोशी हो गई।

जहां तक ब्रिटिश प्रधानमंत्री का सवाल है, तो 1721 में रॉबर्ट वाल्पोल देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे जो गोरे थे। तीन सौ साल के इतिहास में कभी भी कोई काला इस देश का प्रधानमंत्री नहीं बन पाया, ऐसे में ऋषि सुनक का नाम महज उदारवादी लोकतंत्र का दिखावटी चेहरा था, हकीकत में होना वही था जो ब्रिटिश इतिहास कहता रहा है।

दरअसल, जो ब्रिटिश समाज को जानते हैं, वे यहां की कथित उदारवादी लोकतांत्रिक संभावनाओं और आशंकाओं को भी भलीभांति समझते हैं। करीब दो साल पहले अमेरिका के मिनिपोलिस में अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद यूरोप में  ब्लैक लाइव्स मैटर यानी नस्लभेद के विरोध में प्रदशर्न हुए थे, उस दौरान ब्रिटेन के कई शहरों में भी इन प्रदशर्नों का आयोजन हुआ था। इस दौरान भी ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी की ही सत्ता थी।

कंजर्वेटिव पार्टी ने इस प्रकार के विरोध प्रदशर्न का न केवल विरोध किया, बल्कि प्रदशर्कारियों को कड़ी हिदायत भी दी। इन सबके बीच नस्लभेद के समर्थन में ब्रिटेन के दक्षिणपंथियों ने जो किया, उससे पता चला कि विविधता से भरे इस देश में काले और गोरों के बीच नफरत की खाई कितनी गहरी है।

ये दक्षिणपंथी समूह कंजर्वेटिव पार्टी का ही समर्थन करते हैं, और ब्रिटेन की हकीकत है कि वहां लेबर पार्टी से कहीं ज्यादा लोकप्रियता कंजर्वेटिव पार्टी की ही है। 2025 में ब्रिटेन में आम चुनाव होने वाले हैं, और देश की नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने कंजर्वेटिव पार्टी को सत्ता में बनाए रखने का जो वादा किया है, वह संयोग नहीं है।

इसी प्रकार ऋषि सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री न बन पाना संयोग नहीं, बल्कि कंजर्वेटिव पार्टी की वह राजनीतिक समझ थी, जिसके सहारा उन्होंने दुनिया भर में ऋषि सुनक के बहाने ब्रिटिश लोकतंत्र की उदारता को प्रचारित कर दिया। हालांकि प्रधानमंत्री किसे बनाना है, यह निर्णय पहले ही तय हो चूका था।

यूरोपियन यूनियन से अलग होने के पीछे भी ब्रिटिश नागरिकों की नस्लीय कट्टरता ही रही है। विश्व के सबसे बड़े इकहरे बाजार यूरोपियन यूनियन का आर्थिक द्वार होने के बाद भी ब्रिटेन द्वारा इससे अलग हो जाना आधुनिक विश्व की बड़ी घटना है, जिसने विविधता को दरकिनार कर नस्लीय श्रेष्ठता को तरजीह देना ज्यादा पसंद किया। वास्तव में ब्रिटिश समाज मुक्त व्यापार के फायदों और अपने देश की आर्थिक प्रगति से ज्यादा अप्रवासन की उन चुनौतियों से ज्यादा आशंकित है, जो पूर्वी यूरोप और गृह युद्ध से जूझ रहे अरब और अफ्रीकी देशों से आ रही है। यहां के निवासियों को लगता था कि यूरोपीय यूनियन में ज्यादा समय तक बने रहने से न केवल उनका सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य बदल जाएगा, बल्कि स्थानीय नागरिकों के सामने रोजगार और सुरक्षा का संकट भी गहरा सकता है।

2011 में ब्रिटेन की जनसंख्या के आंकड़े सामने आए तो उसकी भी यहां के परंपरावादी समाज में कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई थी। इन आंकड़ों में ब्रिटेन की जनसंख्या को 6 करोड़ 32 लाख बताया गया था जिसमें ब्रिटेन के स्थानीय निवासियों का अनुपात 2001 की जनगणना के 87 फीसदी के मुकाबले घटकर 80 फीसदी बताया गया था। ब्रिटेन के जनसंख्या अनुपात में पिछले 10 सालों में आए बदलाव के लिए मुख्य कारण आप्रवासियों का ब्रिटेन आना बताया गया। इन कारणों से ब्रिटिश राजनीति में अप्रवासन की समस्या को लेकर हलचल बढ़ गई। इसका असर जनमत संग्रह में देखने को मिला।

2016 में ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह में लोगों से सवाल किया गया कि आप यूरोपीय संघ के सदस्य बने रहना चाहते हैं, या इससे बाहर निकलना चाहते हैं। जवाब में 52 प्रतिशत लोगों ने यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के पक्ष में मतदान किया था। कंजर्वेटिव पार्टी के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन लगातार ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से अलग होने के समर्थक बने रहे और उन्होंने कैंपेन लीव का प्रतिनिधित्व भी किया था। उन्हें दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर झुकाव के लिए जाना जाता है। अब उन्होंने ऋषि सुनक को दरकिनार करने में देर नहीं की और लिज ट्रस का समर्थन करके उन्हें देश का अगला प्रधानमंत्री बनाना सुनिश्चित कर दिया।

शात सत्य है कि ब्रिटेन के गोरे नस्लवादी हैं, और देश का नेतृत्व करने के लिए उनकी पहली पसंद गोरा ही हो सकता है।  इसका एक प्रमुख कारण ब्रिटिश समाज में गोरों की श्रेष्ठता का वह भाव है, जो कालों के प्रतिनिधित्व की संभावनाओं को नकारता रहा है। जैविक अंतर की सामाजिक धारणाओं पर आधारित भेदभाव और पूर्वाग्रह दुनिया के सबसे बड़े उदारवादी लोकतांत्रिक देश ब्रिटेन की राजनीति पर असरकारक है, ऋषि सुनक की पराजय से फिर स्पष्ट हो गया है। ऋषि सुनक देश का ऐसा सुधारवादी चेहरा बनकर उभरे थे जो देश की गिरती आर्थिक स्थिति को न केवल रोक सकते थे, बल्कि भारत जैसे देश से आर्थिक संबंधों को बढ़ाकर उसे मजबूत स्थिति में जल्दी से ला सकने में सफल हो सकते थे। लेकिन तमाम खूबियों के बाद भी कंजर्वेटिव पार्टी द्वारा उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनाना पसंद नहीं किया गया।

बहरहाल, दुनिया के कथित उदारवादी लोकतांत्रिक देश ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी के नेता चुनने की होड़ और परिणामों से साफ हो गया कि यूरोप के आधुनिक समाज की जड़ों में नस्लवाद का जहर इस कदर हावी है कि दूसरों के लिए वहां कोई जगह बनती ही नहीं है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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