राजमार्ग निर्माण : गुणवत्ता से न हो समझौता
राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का एक वीडियो काफी चर्चा में था।
राजमार्ग निर्माण : गुणवत्ता से न हो समझौता |
प्रश्न के उत्तर में मंत्री जी ने ऐसे कई दावे कर दिए जो यदि समय पर सच हुए तो हर भारतीय का सीना फूला नहीं समाएगा, परंतु सवाल उठता है कि अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए नेताओं द्वारा किए गए ऐसे वादों और दावों में कहीं निर्माण की गुणवत्ता के साथ समझौता तो नहीं हो रहा?
पिछले दिनों हुई वष्रा के कारण हिमाचल प्रदेश व अन्य पहाड़ी राज्यों में हुए भूस्खलन की खबरें आपने जरूर पढ़ी होंगी। आए दिन ऐसी दुर्घटनाओं में जान-माल का काफी नुकसान होता है। पहाड़ों पर होने वाली इन दुर्घटनाओं को कुदरत का कहर कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है, लेकिन सत्य इसके विपरीत है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हमें बहुत महंगी पड़ रही है। ऐसी दुर्घटनाओं के पीछे बहुत सारे निहित स्वार्थ कार्य करते हैं, जिनमें राजनेता, अफसर और निर्माण कंपनियां प्रमुख होती हैं। क्योंकि ऐसे आत्मघाती ‘विकास’ के पीछे केवल आर्थिक मुनाफा ही सर्वोच्च प्राथमिकता होता है। ये मुनाफा करने वाले लोग नेताओं से बड़े-बड़े ऐलान तो जरूर करवा देते हैं, लेकिन इन ऐलानों के पीछे छिपे अपने स्वार्थ को कभी सामने नहीं आने देते।
इन भ्रष्ट अफसरों और निर्माण कंपनियों का भांडा तब फूटता है जब लोकार्पण के कुछ ही दिनों बाद अरबों रुपये की लागत से बने राजमार्ग या एक्सप्रेस-वे गुणवत्ता की कमी के चलते या तो धंस जाते हैं या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ऐसा भी देखने को मिला है जब रेल की पटिरयां भी धंस गई और रेल दुर्घटना हुई। मिसाल के तौर पर दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे बड़े-बड़े राज्यों से वष्रा के दिनों में सड़कों के धंस जाने के कई मामले हाल ही में सामने आए हैं। गौरतलब है कि ये परियोजनाएं किसी और लक्ष्य को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं।
जितनी महंगी परियोजना होती है उतनी जल्दी उसे मंजूरी मिलती है। फिर उसमें उतना ही ज्यादा कमीशन बनता है। यह कोई नई बात नहीं है सदा से यही चला आ रहा है और आजतक कुछ भी नहीं बदला हालांकि पारदर्शिता के दावे बहुत किए गए। सड़क बनने के बाद यदि किन्ही कारणों से सड़क पर कोई टूट-फूट होती है तो उसकी मरम्मत की ठेकेदारी पर भी ठीक वैसा ही होता है जैसा सड़क के बनने पर हुआ था। दोनों ही स्थितियों में धनलक्ष्मी की अहम भूमिका होती है, परंतु कुछ काम ऐसे होते हैं, जिनमें आर्थिक लाभ के बजाए जनहित को महत्त्व देना बेहतर होता है। नितिन गडकरी हों या भविष्य में आने वाले मंत्री, इन सबको जनहित के कार्यों में जनता के हित को ही महत्त्व देना चाहिए। ये आम मतदाता की अपेक्षा रहती है। गडकरी ने राज्य सभा में कहा कि 2024 से पहले देश की सड़कों को अमेरिका जैसा कर दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस साल दिसम्बर तक दिल्ली से कई शहर 2 घंटे की दूरी पर होंगे। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि, ‘दिल्ली से मेरठ चालीस मिनट में आते हैं। मेरठ के लोगों ने बताया कि हम कनॉट प्लेस जाते हैं और आइसक्रीम खाते हैं और वापस मेरठ आ जाते हैं।’ यह बात अगर सच है तो तारीफ के काबिल है। पिछले वर्ष मेरा राजस्थान के जैसलमेर जाना हुआ। वहां ‘भारत माला परियोजना’ के तहत बनी नई सड़कों पर चलते हुए इस बात का यकीन नहीं हो रहा था कि हम भारत में हैं। ऐसा ही कुछ अनुभव तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद की नई बनी रिंग रोड पर भी हुआ जहां गाड़ियां हवा से बातें कर रही थीं।
नितिन गडकरी ने आने वाले कुछ महीनों में बनने वाले राजमागरे की लिस्ट गिनाते हुए कहा कि ‘दिल्ली से दो घंटों की दूरी तय करने वाले शहर होंगे जयपुर, हरिद्वार और देहरादून। दिल्ली से अमृतसर की दूरी 4 घंटे में और दिल्ली से मुंबई की दूरी 12 घंटे में इसी साल दिसम्बर से पहले हम संभव कर देंगे।’ उन्होंने ये भी कहा कि चेन्नई से बेंगलुरू की दूरी भी 2 घंटे में तय हो जाएगी। पिछले दिनों गडकरी का एक निरीक्षण सुर्खियों में था, जहां वे निर्माणाधीन दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे के निरीक्षण के लिए रतलाम पहुंचे। उस हिस्से का स्पीड टेस्ट करने के लिए अपनी गाड़ी को 150 तेज गति से चलवाया। स्पीड टेस्ट कर उन्होंने एक मिसाल कायम की जो भविष्य में आने वाले सड़क एवं राजमार्ग मंत्रियों के लिए उपयोगी होगी।
इतना ही नहीं सड़क या राजमार्ग बनाने वाली कंपनी को भी इस बात का डर रहेगा कि उनके द्वारा बनाई गई सड़क के किसी भी हिस्से पर ऐसा स्पीड टेस्ट हो सकता है। लक्ष्य पूर्ति के साथ गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इन घोषणाओं के चलते किए गए ये दावे गुणवत्ता के पैमाने पर कितने खरे उतरते हैं? चूंकि ऐसी योजनाओं में भ्रष्टाचार तो अपने पांव पसारता ही है? ऐसे में जनहित का दावा करने वाले नेता क्या वास्तव में जनहित कर पाएंगे?
| Tweet |