बिहार : बढ़ रही सामाजिक जागरूकता

Last Updated 28 Mar 2022 12:09:17 AM IST

किसी भी प्रदेश को सशक्त बनाने के लिए जरूरी है कि वहां सत्ता का विकेंद्रीकरण किया जाए यानी गांव-गांव में सत्ता को पहुंचाया जाए।


बिहार : बढ़ रही सामाजिक जागरूकता

यह तभी संभव हो सकता है जब पंचायतों को सशक्त बनाया जाएगा। पंचायत ही वह इकाई है, जिसके जरिए देश में समावेशी विकास की संकल्पना को साकार किया जा सकता है।
गांवों का विकास सुनिश्चित करने के लिए 73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 के प्रावधानों के आलोक में बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 लागू किया गया। इसे अमलीजामा पहनाने का मकसद था ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति एवं जिला स्तर पर जिला परिषद् का गठन करके ग्रामीण क्षेत्र में विकास की गतिविधियां सुचारू रूप से जारी रखी जाएं क्योंकि गांवों का विकास दिल्ली या पटना में बैठकर नहीं किया जा सकता।

इसके लिए जरूरी है कि गांव, तहसील एवं जिला स्तर पर शासन की इकाइयां मौजूद हों और उनमें स्थानीय लोगों की सहभागिता भी हो। समावेशी विकास के लिए जरूरी है कि ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद् में समाज के वंचित तबकों यथा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, पिछड़ों और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाए क्योंकि आजादी के कई सालों के बाद भी प्रदेश में समाज के वंचित तबकों का समुचित विकास नहीं हो पाया है। न ही सत्ता में उनकी भागीदारी है। महिला-पुरु ष की बराबरी की जहां तक बात है तो महिला आज भी पुरु ष के बराबर नहीं है।

इसलिए आवश्यक है कि जमीनी स्तर पर लैंगिक समानता सुनिश्चित की जाए। इसलिए बिहार में पंचायत स्तर पर महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। मौजूदा समय में बिहार में 8067 ग्राम पंचायतें, 533 पंचायत समितियां और 38 जिला परिषद हैं। ग्राम पंचायतों को वाडरे में बांटा गया है, जिनकी संख्या 1.15 लाख है। गांव में ही ग्रामीणों को समस्याओं का समाधान मिल सके इसके लिए ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम कचहरी का गठन किया गया है, जहां आपराधिक और दीवानी विवादों का निपटारा किया जाता है। ग्राम सभा के अलावा हर वार्ड में वार्ड सभा होती है, जहां ग्राम पंचायत के कार्यों का क्रियान्वयन किया जाता है।

प्रत्येक वार्ड में निगरानी समिति होती है, जो योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार होती है। संविधान की 11वीं अनुसूची में वर्णित 29 विषयों में पंचायत के कार्यों को परिभाषित किया गया है। अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप कार्य नहीं करने पर सरकार पंचायतों को विघटित कर सकती है। पंचायत के प्रधान या उपप्रधान को भी अधिकारों का दुरुपयोग करने पर उनके पद से हटाया जा सकता है। इन प्रावधानों से जनप्रतिनिधियों की मनमानी या तानाशाही पर रोक लगाई गई है।  पंचायत समिति के पारदर्शी, लोकतांत्रिक और सुचारू रूप से काम करने के लिए 5 सालों में मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, वार्ड सदस्य और जिला परिषद् सदस्य का चुनाव करवाया जाता है। 2016 में इनका चुनाव करवाया गया था और अब 5 सालों के बाद पुन: 2021 में इनका चुनाव करवाया गया है। 2021 में हुए पंचायत चुनाव में निर्वाचित जिला परिषद् सदस्यों की संख्या 432, पंचायत समिति सदस्यों की संख्या 7579, ग्राम पंचायत मुखिया की संख्या 6973, ग्राम पंचायत सदस्यों की संख्या 95721, ग्राम कचहरी सदस्यों की संख्या 6674 और ग्राम कचहरी पंच की संख्या 83852 थी।
जिला परिषद् के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में महिलाओं की संख्या 57.41 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की संख्या 42.59 प्रतिशत है। वहीं, इन सदस्यों में 50.46 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग से आते हैं, जबकि 26.62 प्रतिशत सामान्य वर्ग से और 22.92 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। इन सदस्यों में से 0.69 प्रतिशत पीएचडी हैं, 6.48 स्नातकोत्तर हैं और 22.22 प्रतिशत स्नातक हैं। पंचायत समिति सदस्यों में से 52.87 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग हैं, 23.67 प्रतिशत सामान्य वर्ग और 23.46 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति हैं। इनमें से 53.78 प्रतिशत महिला हैं, जबकि 46.19 प्रतिशत पुरुष एवं 0.03 प्रतिशत ट्रांसजेंडर हैं। इन सदस्यों में से 0.09 प्रतिशत पीएचडी हैं, 1.60 प्रतिशत स्नातकोत्तर हैं, और 14.55 प्रतिशत स्नातक हैं। 17.77 प्रतिशत बारहवीं पास हैं, जबकि 21.14 प्रतिशत दसवीं पास हैं। ग्राम पंचायत मुखिया के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में महिलाओं की संख्या 52.06 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की संख्या 47.91 प्रतिशत है और ट्रांसजेंडर 0.03 प्रतिशत हैं। वहीं, इन सदस्यों में 51.14 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग से आते हैं, जबकि 27.79 प्रतिशत सामान्य वर्ग से और 21.07 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। इनमें से 0.11 प्रतिशत पीएचडी हैं, 2.90 स्नातकोत्तर हैं, और 18.47 प्रतिशत स्नातक।
20.00 प्रतिशत बारहवीं पास हैं, जबकि 22.00 प्रतिशत दसवीं पास। ग्राम पंचायत सदस्यों में से 52.80 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग हैं, 20.76 प्रतिशत सामान्य वर्ग और 26.43 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति हैं। इनमें से 52.32 प्रतिशत महिला हैं, जबकि 47.66 प्रतिशत पुरुष एवं 0.02 प्रतिशत ट्रांसजेंडर हैं। इनमें से 0.01 प्रतिशत पीएचडी हैं, 0.60 प्रतिशत स्नातकोत्तर हैं, और 9.42 प्रतिशत स्नातक हैं। 12.52 प्रतिशत बारहवीं पास हैं, जबकि 16.72 प्रतिशत दसवीं पास हैं। ग्राम कचहरी सरपंच के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में महिलाओं की संख्या 46.46 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की संख्या 53.52 प्रतिशत है। अन्य जनप्रतिनिधियों के मुकाबले ग्राम कचहरी सरपंच के मामले में महिलाओं की भागीदारी कम है, और ट्रांसजेंडर की संख्या 0.01 प्रतिशत हैं। ग्राम कचहरी पंच के  जनप्रतिनिधियों में महिलाओं की संख्या 59.61 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की संख्या 40.37 प्रतिशत है और ट्रांसजेंडर 0.01 प्रतिशत हैं।
आर्थिक रूप से पिछड़े बिहार में सत्ता की अंतिम इकाई में पढ़े-लिखे और महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी बढ़ी है, जो प्रदेश में सामाजिक-राजनीतिक बदलाव का संकेत है। सत्ता में ट्रांसजेंडर की बढ़ती हिस्सेदारी दर्शाती है कि सोच में बदल रही है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और महिलाओं की ग्रामीण शासन व्यवस्था में 50 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी सामाजिक रूप से जागरूक प्रदेश की निशानी है। पंचायत चुनाव में जनप्रतिनिधियों की लैंगिक और वर्गवार संख्या के आधार पर कहा जा सकता है कि बिहार सामाजिक-राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद ही समृद्ध राज्य है, और पंचायत चुनाव के आंकड़े ग्रामीण इलाकों में आ रहे सामाजिक-राजनीतिक सशक्तिकरण के प्रतीक हैं।

सतीश कु. सिंह


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