सरोकार : ऑस्ट्रेलिया की संसद के जरिए महिला नेताओं पर एक नजर

Last Updated 11 Jul 2021 01:10:09 AM IST

ऑस्ट्रेलिया की पूर्व सांसद जूलिया बैंक्स की किताब ‘पावर प्ले’ इन दिनों खूब चर्चित है। किताब में सत्ता के गलियारों के अंधेरे- उजाले उजागर किए गए हैं।


सरोकार : ऑस्ट्रेलिया की संसद के जरिए महिला नेताओं पर एक नजर

पूर्व प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल और इसके बाद स्कॉट मॉरिसन के दौर की कई सच्चाइयां किताब में दर्ज हैं। कैसे जूलिया का इमोशनल ब्रेकडाउन हुआ और किस तरह उन्होंने अंतत: राजनीति से संन्यास लेने और अपनी आपबीती को जगजाहिर करने का फैसला किया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने उन्हें यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया गया। टर्नबुल की कैबिनेट के एक सदस्य ने उन्हें अनुचित तरीके से छूने की कोशिश की। पर किताब का नतीजा क्या निकला? मौजूदा प्रधानमंत्री मॉरिसन ने मीडिया से कहा कि बैंक्स मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं। पर भावुक हो जाना मानसिक रूप से कमजोर हो जाना क्यों माना जाता है?

अक्सर पागलपन और भावुकता जैसे शब्दों को महिलाओं से जोड़ा जाता है, और इस तरह उन्हें बदनाम करके, उन्हें कमजोर बातकर अधिकारों से वंचित भी किया जाता है। यह भी परंपरागत रूप से माना जाता है कि औरतें तर्कहीन होती हैं, और उन्मादी भी। इसी पैंतरे से समाज के हर क्षेत्र में उसके हाथों में डोर नहीं दी जाती। उसकी एजेंसी को नकारा जाता है। इसे ही कहा जाता है गैसलाइटिंग। मतलब उन्हें भावुक और पागल बता दीजिए। चुप करा दीजिए और उन्हें काबू में रखने की कोशिश कीजिए। हैशटैग मीटू के दौरान गैसलाइटिंग को खूब बल मिला। जब उन्होंने अपने अनुभवों का साझा किया तो ताकतवर पदों पर मौजूद लोगों ने कहा, महिलाओं ने उन्हें गलत समझा। वे खुद को पीड़ित बताने लगे। बैंक्स के मामले में उनकी पार्टी यानी लिबरल पार्टी ने भी उनकी आलोचना करने में कोताही नहीं की। पार्टी के ट्रेजरर ने कहा कि उन्हें छुट्टी पर चले जाना चाहिए या यूएन में इस रणनीति का इस्तेमाल करना चाहिए।

वैसे ऑस्ट्रेलिया में इससे पहले भी कई महिला सांसदों ने अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनमें उन्होंने पुरु षों के प्रभुत्व वाली राजनीति के स्याह पहलुओं का खुलासा किया है। 1972 में डेम एनिड लोयंस का संस्मरण ‘अमंग द कैरियन क्रोज’ ऐसी ही किताब है। बाकी की महिला नेताओं की किताबों में भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और राजनैतिक पार्टियों के पुरु षवादी इतिहास को चुनौतियां दी गई हैं। 1991 में जब ऑस्ट्रेलिया की लेबर पार्टी ने अपनी शताब्दी समारोह बनाया था तब पुरु षों के इतिहास का ही जश्न मनाया गया था। तब क्वीन्सलैंड की पहली महिला सीनेटर मार्गेट रेनोल्ड्स ने कहा था कि इस रिकॉर्ड को दुरु स्त किया जाना चाहिए।

भारत में भी महिला नेताओं को लेकर राजनीतिक पार्टियों की सोच ऐसी ही है। प. बंगाल के विधानसभा चुनावों में तृणमूल नेता और मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के विरोध में कई तरह की बातें कही गई। बसपा सुप्रीमो मायावती को अपशब्द कहने में कोई कोताही नहीं बरतता। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी को लगातार व्यक्तिगत आक्षेपों का सामना करना पड़ा है। विवादित बयान देने में भारतीय नेता किसी से कम नहीं। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी एक पार्टी कार्यक्रम में जयंती नटराजन को ‘टंच माल’ कह दिया था। सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रियंका गांधी के लिए कहा था, ‘वह बनारस से चुनाव हार जाएंगी क्योंकि बहुत शराब पीती हैं।’ प्रधानमंत्री रेणुका चौधरी को सूर्पनखा कह चुके हैं, और शरद यादव महिला आरक्षण विधेयक के विरोध में बयान दे चुके हैं कि इस विधेयक से परकटी महिलाएं संसद में पहुंच जाएंगी।

माशा


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