मीडिया : ट्विटर की हेकड़ी
ट्विटर ने संसदीय समिति के समक्ष जिस तरह की हेकड़ी दिखाई वह तो कभी ‘ईस्ट इडिया कंपनी’ ने भी न दिखाई होगी!
मीडिया : ट्विटर की हेकड़ी |
यद्यपि ट्विटर के अमेरिका वाले असली मालिक नहीं आए लेकिन गुरुग्राम स्थित भारतीय दफ्तर इन्चार्ज आए। जब कमेटी ने उनसे कहा कि अगर ट्विटर को भारत में काम करना है तो उसे भारत के कानूनों को मानना होगा, इसके जवाब में ट्विटर के प्रतिनिधि ने कहा कि ‘ट्विटर अपने नियमों के तहत काम करता है’ और अंत में कहा कि हम आपके सवालों के जवाब देने के लिए अधिकृत नहीं हैं।
ध्यान रहे कि गूगल, फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सऐप और ट्विटर जैसे माइक्रोब्लॉंिगंग प्लेटफॉर्म से भारत सरकार ने नये कानून के तहत सिर्फ इतना चाहा है कि इन कंपनियों को अन्य कंपनियों की तरह ही भारत के कानूनों का अनुपालन करना जरूरी है और इसके लिए इनको अपने दफ्तर में एक शिकायत निवारण प्रकोष्ठ बनाना चाहिए ताकि अगर किसी को कोई शिकायत है तो ये उसका नियमानुसार निवारण कर सकें। हम पहले भी बता चुके हैं कि सरकार ने ये कानून तीन महीने पहले बनाए थे और उनके अनुपालन की अंतिम तिथि पच्चीस मई थी। कानून कहता है कि उसका अनुपालन न करने पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की भूमिका ‘मध्यस्थ’ या ‘बिचौलिए’ की नहीं रहेगी, बल्कि उनकी भूमिका किसी प्रकाशक की तरह की हो जाएगी और ये अपने प्लेटफॉर्म पर दी गई हर सामग्री के लिए उसी तरह कानून के तहत जवाबदेह होंगे जिस तरह आम प्रकाशक होते हैं, या जिस तरह से टीवी के खबर चैनल जवाबदेह हैं।
पहले इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मो को एक प्रकार का लाइसेंस मिला हुआ था कि वे यहां जो चाहे करें लेकिन किसी को शिकायत होती थी तो उसे अमेरिका में शिकायत करनी होती थी। यह एक बेहद दुष्कर और खर्चीला काम था। इसलिए लोग शिकायत नहीं करते थे। यों तो ट्विटर को लेकर भाजपा और सरकार की भूूमिका अवसरवादी ही रही है। जब तक सोशल मीडिया पर भाजपा का हल्ला रहा तब तक सब ठीक था लेकिन जैसे ही विपक्ष हावी हुआ तो भाजपा परेशान हो उठी। इसी बीच किसान आंदोलन के दौरान ‘विरोध उकसाने वाला’ टूलकिट ट्विटर पर आया तो सरकार के कान खड़े हुए। फिर दूसरे ‘टूलकिट’ को ट्विटर द्वारा ‘जाली’ कह देने पर सत्ता पक्ष और ट्विटर आमने सामने आ गए। यों भारत सरकार ने सोशल मीडिया की उच्चश्रृंखलता को कंट्रोल में लाने के लिए तीन महीने पहले ही एक कानूून बनाया था जिसके तहत तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मो को भारत स्थित दफ्तरों में ‘शिकायत निवारण अधिकारी’ नियुक्त करना था जो सोशल मीडिया में प्रकाशित सामग्री पर आती शिकायतों का निपटारा कर सके।
कहने की जरूरत नहीं कि इन कानूनों के अनुपालन के लिए गूगल, यूट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सऐप और इन्स्टाग्राम ने अपनी रजामंदी दे दी लेकिन ट्विटर ने कानूनों के अनुपालन से ना नुकर करनी शुरू कर दी। इसलिए उसे संसदीय समिति के आगे आना पड़ा। ट्विटर ने ऐसे तेवर क्यों दिखाए? उसने अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मो की तरह कानूनों के अनुपालन के लिए हां क्यों नहीं की? इसका एक कारण तो ट्विटर के गोरे मालिक जैेक डोर्सी का अहंकार, राजनीतिक विचारधारा और एजेंडा है और दूसरा कारण अपने यहां का विपक्ष और एक्टिविस्ट हैं, जिनका सुर ट्विटर के सुर से मिला रहता है। इसी वजह से ट्विटर की हेकड़ी बढ़ी है।
भाजपा की शिकायत है कि ट्विटर भारत की वर्तमान सरकार को एक खास रंग से रंग कर दिखाता है जैसे कि लोनी के बुजुर्ग के प्रति हुई हिंसा को लेकर जिस तरह का वीडिया ट्विटर ने दिखाया वह धार्मिक वैमनस्य पैदा करने वाला था। जब पुलिस ने जांच करके बताया कि वह बुजुर्ग मुसलमान तांत्रिक था और तंत्र के ‘उल्टा’ पड़ जाने से नाराज एक हिंदू समेत कुछ मुस्लिम युवकों ने उसे मारा-पीटा तो भी ट्विटर ने उसे नहीं हटाया और पुलिस ने ट्विटर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। इसी तरह ट्विटर ने ‘प्रो खालिस्तानी ट्वीट’ नहीं हटाया और लद्दाख को चीन का हिस्सा दिखाया और मना करने पर देर से हटाया जबकि ‘भारत विरोधी’ ट्वीट बराबर जमे रहते हैं। विपक्ष पुलिस की कार्रवाई को ट्विटर की आजादी का हनन मानता है। लेकिन वह यह नहीं सोचता कि जब विपक्ष की सरकार होगी और ट्विटर फिर उखाड़-पछाड़ करेगा तो वह क्या करेगा? सरकार से कितना भी मतभेद हो, हमें बिल्लियों की तरह नहीं लड़ना चाहिए और उस बंदर को अपना खुदा नहीं मान लेना चाहिए जो बिल्लियों की रोटी भी खुद खा गया।
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