वैश्विकी : क्वाड बनाम ब्रिक्स
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में क्वाड शिखर वार्ता को लेकर चर्चा गरम है। वहीं भारत में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन को लेकर तैयारियां जोरों पर है।
वैश्विकी : क्वाड बनाम ब्रिक्स |
भारत के सामने क्वाड बनाम ब्रिक्स का यक्ष प्रश्न उपस्थित हुआ है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने सबसे पहले और शायद समय से पहले इस बात का ऐलान कर दिया कि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के शीर्ष नेताओं की शिखर वार्ता का आयोजन शीघ्र होगा। इस चतुगरुट (क्वाड) की प्रस्तावित शिखर वार्ता के बारे में भारत के विदेश मंत्रालय ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। शिखर वार्ता का विचार अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से आया है। बाइडेन ने फरवरी महीने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बातचीत की थी। यह स्पष्ट नहीं है कि शिखर वार्ता के प्रस्ताव और उसकी तिथि को लेकर मोदी ने अपनी ओर से कितनी गंभीरता से अपना पक्ष रखा। शिखर वार्ता का प्रस्ताव राष्ट्रपति बाइडेन की ओर से उठाया गया पहला महत्त्वपूर्ण रणनीतिक कदम है। इसके जरिये बाइडेन प्रशासन अमेरिका की इंडो-पैसिफिक (भारत-प्रशांत) नीति और इस बारे में ट्रंप प्रशासन के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहता है। अमेरिका का रणनीतिक लक्ष्य यह है कि इंडो-पैसिफिक सहित पूरी दुनिया में चीन के बढ़ते असर को काबू में किया जा सके।
पश्चिमी मीडिया के अनुसार क्वाड शिखर वार्ता इस महीने के अंत में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हो सकती है। यह घटनाक्रम भारत की विदेश नीति के लिए एक बड़ी दुविधा या धर्मसंकट बन सकता है। यह वह समय है, जब पूर्वी लद् दाख में भारत और चीन के बीच अग्रिम मोचरे से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया जारी है। इस जटिल प्रक्रिया को पूरा होने में अभी काफी समय लगेगा। सैनिक और कूटनीतिक स्तर पर महीनों तक चले प्रयासों से अभी आंशिक सफलता मिली है। इस सफलता से भारत में ब्रिक्स शिखर वार्ता आयोजित करने के लिए भी अनुकूल माहौल बना है। भारत, ब्राजील, रूस, चीन और द. अफ्रीका देशों वाला ब्रिक्स संगठन भारत की बहुध्रुवीय विश्व की सोच पर आधारित विदेश नीति में केंद्रीय महत्त्व रखता है। भारत इस समय ब्रिक्स का अध्यक्ष है और उसे शिखर वार्ता की मेजबानी करनी है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए भारत आएंगे। पूर्वी लद्दाख में सैनिक तनातनी के एक वर्ष लंबे कालखंड में यह पहला मौका होगा जब मोदी और शी जिनपिंग एक मेज पर वार्ता करेंगे। इन दोनों नेताओं के बीच अब तक जितनी मुलाकातें हुई हैं किसी अन्य दो विश्व नेताओं से अधिक है। विडंबना यह है कि द्विपक्षीय बैठकों की लंबी सूची के बावजूद दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास और सीमा विवाद जैसे जटिल मुद्दों पर कोई समझदारी विकसित नहीं हो पाई। पिछले वर्ष गलवान घाटी में हुए सैन्य संघर्ष के कारण यह विश्वास चकनाचूर हो गया। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन पहला अवसर होगा जब मोदी और जिनपिंग नये सिरे से आपसी संबंधों की इमारत खड़ी करें।
मोदी और जिनपिंग वार्ता को लेकर भारत में कोई अप्रत्याशित आशावादिता नहीं है। फिर भी यह संभव है कि इसमें कोई ब्रेक थ्रू अथवा आशावादिता उभर सके। ब्रिक्स सम्मेलन के पहले क्वाड शिखर वार्ता का आयोजन पूरी प्रक्रिया पर ग्रहण लगा सकता है। यह भारतीय विदेश नीति के एक हिस्से पर पक्षाघात सिद्ध हो सकता है। भारत कभी नहीं चाहेगा कि वह बाइडेन के एजेंडे पर आंख मूंदकर अमल करे जिससे पूर्वी लद्दाख और ब्रिक्स शिखर वार्ता पर कोई प्रतिकूल असर पड़े। इन्हीं दिनों रूस के विदेश मंत्री सग्रेई लावरो मोदी-पुतिन शिखर वार्ता की तैयारियों के सिलसिले में भारत आने वाले हैं। क्वाड के बारे में रूस की भी अपनी आशंकाएं हैं और इस बारे में वह भारत को आगाह करता रहा है। क्वाड शिखर वार्ता का असर मोदी-पुतिन शिखर वार्ता पर भी पड़ सकता है।
विदेश नीति के विशेषज्ञ यह उपहास करते रहे हैं कि भारत की विदेश नीति दो घोड़ों पर सवारी करने जैसी है। यह मोदी-जयशंकर विदेश नीति का उपहास करना है। वास्तव में भारत की विदेश नीति की तुलना सूरज के सात घोड़ों से की जा सकती है। विश्व बंधुत्व के सूरज के सात घोड़े दुनिया में उभरते हुए नये शक्ति केंद्र हैं। इन घोड़ों का गंतव्य आपसी सहयोग और समझदारी का इंद्रधनुष है जो 21वीं सदी को एक आदर्श सदी बनाने का आधार हो सकता है।
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