मीडिया : साइबर साम्राज्यवाद
खबर आई है कि आस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मोरीसन ने भारत के पीएम मोदी से संपर्क किया है कि वो सोशल मीडिया दैत्य ‘गूगल’ और ‘फेसबुक’ को नाथने में उनकी मदद करें।
आस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मोरीसन |
साथ ही मोरीसन ने इंग्लैंड, कनाडा, फ्रांस से भी कहा है कि सब देश मिलकर गूगल और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मो की दादागारी को नियंत्रित करने में मदद करें!
आने वाले दिनों में आस्ट्रेलिया की संसद गूगल और फेसबुक दोनों के लिए एक समझौता कानून पास कर सकती है, जिसके तहत उनको आस्ट्रेलिया से निर्गत होने वाली खबरों के लिए इन प्लेटफार्मो को स्थानीय खबर कंपनियों को पैसा देना होगा। आस्ट्रेलिया का मानना है कि गूगल और फेसबुक और उनके अनुषंगों ने मिलकर दुनिया के देशों में बनने वाली खबर को अपने हित में इस्तेमाल किया है उनके डाटा को कॉरपोरेटों को बेचकर बहुत धन कमाया है। अगर आप उनको कानून के दायरे में लाने की कोशिश करते हैं तो ध्मकी देते हैं कि हम आपके देश के नागरिकों को गूगल और फेसबुक की सेवा नहीं लेने देंगे। पिछले ही दिनों गूगल आस्ट्रेलिया को ऐसी धमकी दे भी चुका है! ऐसा ही फ्रांस के साथ हुआ था मगर फ्रांस ने गूगल आदि पर फ्रांसीसी मीडिया घरानों की खबरें लेने पर अपना कॉपीराइट-कानून लागू कर दिया, जिसके तहत अब गूगल को फ्रांसीसी मीडिया घरानों को पेमेंट करना जरूरी हो गया है! बाकी दुनिया के देशों के लिए भी गूगल और फेसबुक कुछ इसी तरह से पेश आते हैं जैसे वे उन देशों की जनता के ‘निव्र्याज सेवक’ हों, जो अपने जरिए दुनिया भर का ज्ञान दुनिया फ्री देते हैं।
सूचना व ज्ञान के ये प्लेटफार्म लोगों को समूह बनाने, संगठन बनाने और ‘क्राउड फंडिग’ करने में मदद करते हैं। वे आपदा-सूचनाओं का मंच बनते हैं। सबको आवाज उठाने की आजादी देते हैं, लेखक रचनाकार बनाते हैं और वो भी ‘फ्री’ में। वे हमारे जैसे कूपमंडूकों को ‘ग्लोबल नागरिक’ बनाने का ‘अहसान’ करते दिखते हैं! ट्विटर हो या इंस्टाग्राम या यूट्यूब या ऐसे ही अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म सब एक थैली के चट्टे-बट्टे हैं। ये सूचना का बिजनेस करने वाले ऐसे नये दैत्याकार कारपोरेशन हैं, जो इस वक्त दुनिया के देशों के लोगों के दिमागों पर शासन करते हैं और दुनिया के लोगों द्वारा डाली गई निजी जानकारी व विचार को अपना बनाकर फिर से बेचकर दुनिया के न्यस्त स्वाथरे के हित में अरबों डॉलर लेकर काम करते हैं। अब तो दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप भी करने लगे हैं। याद करें, कुछ बरस पहले इंटरनेट और मोबाइल के हल्ले ने मिस्र की सरकार को उखाड़ दिया था, जो काम पहले ‘सीआईए’ ‘केजीबी’ किया करते थे कि अब ये प्लेटफार्म करते दिखते हैं। फर्क इतना है कि वे घोषित जासूसी एजेंसी थीं ये ‘सूचनादाता प्लेटफार्म के रूप में काम करते हैं। ये हमारी ही सूचना, हमारा ही डाटा लेकर, हमें बताए बिना बेच देते हैं और उसे हमें कारपारेटों के पक्ष में पटाने-फुसलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं और मजा ये कि इस में भी ये अहसान करते दिखते हैं कि हम आपको ‘फ्री अभिव्यक्ति’ का ‘फ्री मंच’देते हैं और देशकाल के बंध से मुक्त कर आपको ‘विश्व नागरिक’ बनाते हैं, जबकि वे आपके दिल-दिमाग पर, कलम पर, जुबान पर राज्य करते हैं और आपको ही अपने हित में हांकते हैं। यह नया साइबर साम्राज्यवाद है!
गत 26 जनवरी को ग्रेटा थनबर्ग व देसी सहयोगियों द्वारा ‘ट्वीट’ किए गए ‘टूलकिट’ के जरिए, हमारे गंणतंत्र दिवस को जिस तरह से अराजकता और हिंसा में झोंकने की साजिश रची वह सबके सामने है। खालिस्तानी तत्वों द्वारा फाइनेंस यह ‘टूलकिट’ जिस तरह से किसान आंदोलन और अधिक धारदार करने गुर सिखाता था। उस दिन लालकिले पर जो हुआ वह इसी ‘टूलकिट’ के हिसाब से किया गया लगता है।
कुछ उपद्रवियों ने लालकिले पर एक खास रंग का धर्मिक झंडा तक फहराया, जिसके लिए एक खालिस्तानी द्वारा ढाई लाख डॉलर का इनाम तक रखा गया था। जाहिर है कि यह भारत की संप्रभुता पर चोट करने का खुला प्रयत्न था, जिसका माध्यम ‘ट्विटर’ था। तभी से ‘ट्विटर’ की भूमिका को लेकर भारत सरकार चिंतित दिखती है और चाहती है कि इन सोशल मीडिया प्लेटफार्मो की छुट्टा भूमिका को कानून के दायरे में लाए। शायद इसीलिए आस्ट्रेलिया के पीएम ने मोदी से बात की है और चाहा है मिलजुल कर कुछ ऐेसा किया जाए ताकि संप्रभुता प्राप्त देश इन ‘सोशल मीडिया कारपोरेट दैत्यों’ के ब्लैकमेल में न आएं! सूचना के इस नये ‘साइबर साम्राज्यवाद’ के ब्लैकमेल से सतत संघर्ष की जरूरत है!
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