आजादी असीमित नहीं
राजधानी दिल्ली के ईर्द-गिर्द नये कृषि कानूनों के विरोध में पिछले नवम्बर महीने से किसानों का धरना-प्रदर्शन लगातार जारी है।
आजादी असीमित नहीं |
किसानों के इस धरना और प्रदर्शनों के बीच सर्वोच्च अदालत का यह फैसला काफी महत्त्वपूर्ण है कि कभी भी और कहीं भी विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार किसी को नहीं है और किसी के धरना-प्रदर्शनों से दूसरे नागरिकों का अधिकार यदि प्रभावित होते हैं तो उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। गौर करने वाली बात यह है कि किसानों का जहां धरना-प्रदर्शन चल रहे हैं उन क्षेत्र के स्थानीय निवासियों ने किसानों के इस आंदोलन का यह कहते हुए विरोध किया था कि इस आंदोलन से हमारे रोजमर्रा का जीवन प्रभावित हो रहा है। हालांकि सर्वोच्च अदालत का यह फैसला किसानों के संदर्भ में नहीं बल्कि पिछले वर्ष शाहीन बाग में किए गए विरोध प्रदर्शनों के संबंध में आया है। जाहिर है कि सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी नागरिकों का असीमित अधिकार नहीं है और इसका इस्तेमाल कहीं भी और कहीं भी नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च अदालत ने संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों की व्याख्या करते हुए शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन मामले में पिछले वर्ष दिए गए अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी है।
शीर्ष अदालत ने 7 अक्टूबर 2020 को अपने फैसले में शाहीन बाग में संशोधित नागरिकता कानून के विरुद्ध प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक रास्ते पर कब्जा जमाने पर बहुत तल्ख टिप्पणी की थी। अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि कुछ प्रदर्शन अचानक हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असहमति या प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक स्थलों पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता, जिससे दूसरे नागरिकों के अधिकार प्रभावित हों। लोकतंत्र में नागरिकों को प्रदर्शन करने और असहमति व्यक्त करने का संवैधानिक अधिकार है। भारत का संविधान भी अपने नागरिकों को यह अधिकार देता है, लेकिन हमें याद रखना होगा कि संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों के साथ-साथ नागरिकों के कुछ कर्त्तव्य भी हैं। हालांकि कर्त्तव्य का प्रावधान मूल संविधान का हिस्सा नहीं था। इसे बाद में जोड़ा गया। इसलिए अपने अधिकारों के साथ-साथ नागरिकों को अपने कर्त्तव्यों का भी निर्वहन करना अनिवार्य है। इसीलिए संविधान प्रदत्त कोई भी अधिकार असीमित नहीं हो सकता है।
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