मीडिया : एंकर के सच-झूठ
एक थीं एक अंग्रेजी चैनल की एक नामी एंकर।
मीडिया : एंकर के सच-झूठ |
इक्कीस साल तक पत्रकारिता करने के बाद गए जून के महीने में एक दिन उन्होंने अपने ट्वीट से बताया कि पत्रकारिता के पेशे को छोड़ अमेरिका के हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में पत्रकारिता पढ़ाने जा रही हैं। उनके मित्रों ने उनको बधाइयां दीं। छह महीने तक बधाइयां लटकी रहीं, लेकिन इसी जनवरी के दूसरे सप्ताह में अचानक एंकर मैडम ने अपने को ‘फिशिंग’ का ‘विक्टिम’ बताते हुए पुलिस से शिकायत की कि उनके साथ किसी हैकर ने छल किया है, उनके सोशल मीडिया में एकांउट में सेंध लगाई गई है और उनको ‘भरमाया’ गया है। एंकर की ‘शिकायत’ की खबर आते ही सोशल मीडिया में वायरल हो गई। उनके अमित्र ट्विटराती पीछे लग लिए और उनको झूठा बताकर उनका मजाक उड़ाने लगे। उधर, इस विवाद से चकित हॉर्वर्ड के एक अधिकारी ने सफाई दी कि ‘हैरत है। हॉर्वर्ड में न पत्रकारिता विभाग है, न पत्रकारिता का कोई पाठय़क्रम है, और न ही कोई प्रोफेसर है!’
सच क्या है?
सच या तो एंकर को पता है, या हॉर्वर्ड को पता है। हम तो अब तक उपलब्ध सूचनाओं का ‘विखंडन’ करके ही सच का पता लगा सकते हैं। अब जरा देखें: एक दिन एंकर घोषित करती है कि हॉर्वर्ड में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर उनकी नियुक्ति हो गई है, और वे जल्द ही वहां पत्रकारिता पढ़ाने जा रही हैं। फिर वे ही बताती हैं कि जो कोर्स जून-जुलाई में शुरू होना था वह कोरोना के कारण अब सितम्बर से शुरू होगा। इसी बीच एक अन्य महिला पत्रकार, नवम्बर में इस एंकर को चेताती भी है कि तुम झूठ क्यों बोल रही हो?
हॉर्वर्ड की फैकल्टी की लिस्ट में तुम्हारा नाम तक नहीं..यानी कि नवम्बर तक चर्चित एंकर हॉर्वर्ड की फैकल्टी की लिस्ट को न देखती है, न फैकल्टी से बात करती हैं कि उनकी वास्तविक स्थिति क्या है? इसके दो ढाई महीने बाद उनको इलहाम होता है कि उनके एकांउट में हैकरों ने सेंध लगाई है और उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा है। उनकी मानें तो उनके एकांउट में सेंध लगाने वाले ने ही, एक दिन उनको हॉर्वर्ड में पत्रकारिता के एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त कर दिया और उन्होंने भी अपनी इस नियुक्ति को आंख मूंदकर स्वीकार कर लिया और बाद में यह भी बताया कि कोर्स जून में न शुरू होकर सितम्बर में होगा और जब नवम्बर में एक पत्रकार ने चेताया कि ‘मैडम आप झूठ बोल रही हैं। आप हॉर्वर्ड की लिस्ट में नहीं हैं’ तो भी उनने नहीं माना। जब इस खबर को आए ढाई महीने गुजर गए तब उनकी समझ आया कि उनके संग धोखा किया गया है!
आज के इंटरनेट से बिंधी दुनिया में जहां कोई भी विश्वविद्यालय एक क्लिक जितनी दूर है, वहां की सचाई जानने में एक नामी पत्रकार को छह महीने लग जाते हैं-यही अपने आप में बेहद आश्चर्यजनक बात है। क्या हम एंकर से पूछ सकते हैं कि क्या आपने हॉर्वर्ड में इस पोस्ट के लिए एप्लाई किया था या एप्लाई किए बिना ही आपकी नियुक्ति हो गई या कि आपकी योग्यता को देख हॉर्वर्ड ने ही ऑफर कर दी हो! और यह ‘षड्यंत्री’ प्रक्रिया पूरे छह महीने चलती रही, लेकिन न आपको पता चला, न हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय को कि यह सब जालसाजी है।
मान लिया कि खुशी में आपको पता न चला हो, लेकिन हॉर्वर्ड तो उस खुशखबर का खंडन या मंडन कर सकता था जो आपने छह महीने पहले दी थी। क्या हॉर्वर्ड ने उसको भी नहीं देखा? हमारी समझ में, हॉर्वर्ड कोई पंसारी की दुकान नहीं कि लाला जी ने कह दिया कि कल पढ़ाने आ जाना और आपने अपने को नियुक्त मान लिया।
आज की बेहद औपचारिक दुनिया में सब कुछ ‘रिकॉर्ड’ पर होता है। चाहे वह ‘ऑनलाइन’ रिकॉर्ड ही क्यों न हो। फिर, ऐसी नियुक्ति के दौरान ‘नियोक्ता’ और ‘नियुक्त’ के बीच कुछ तो ‘चैट’ हुई होगी? या कि एंकर इतनी नामी थीं कि न नियोक्ता ने जरूरी समझा कि उनसे बात की जाए और न उन्होंने ही अपने नियोक्ता को औपचारिक धन्यवाद के लायक समझा?
हजारों डॉलर महीने वाली दुर्लभ नौकरी के लिए औपचारिकताओं के प्रति ऐसी उदासीनता किसी विरले संन्यासी में ही हो सकती है! मामला सिर्फ इन एक एंकर की नियुक्ति के फ्रॉड का नहीं है। एक दूसरे भी एंकर हैं, जो इन दिनों एक ‘टीआरपी फ्रॉड’ में लिप्त बताए जाते हैं, और क्या पता और कौन-कौन प्रतिभा हैं, जो क्या-क्या न करते हों? इसलिए बेहतर हो कि एंकर के झूठ-सच की जांच सीबीआई करे क्योंकि मामला सिर्फ एक एंकर का नहीं, समूचे एंकर कर्म व पत्रकारिता कर्म के ‘स्तर’ का है।
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