वैश्विकी : दुनिया की बदेलगी शक्ल
कोरोना वायरस के खिलाफ चल रही विश्वव्यापी मुहिम के बीच विदेश नीति के विशेषज्ञों और रणनीतिकारों ने यह कयास लगाना शुरू कर दिया है कि आने वाले दिनों में दुनिया का क्या खाका बनेगा।
वैश्विकी : दुनिया की बदेलगी शक्ल |
इस प्रकोप के पहले विशेषज्ञ इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि आगामी दशकों में दुनिया का नेता कौन-सा देश होगा। अमेरिका और चीन के बीच महाशक्ति बनने की प्रतिद्वंद्विता बड़े संघर्ष का रूप लेगी, यह भी आशंका व्यक्त की जा रही थी। कोरोना महामारी ने विशेषज्ञों को नये सिरे से यह सोचने पर मजबूर कर दिया है। कोरोना महामारी के बाद की दुनिया के देश अपने-अपने घरौंदे में सीमित हो जाएंगे या विव्यापी संकटों का सामना करने के लिए एक कुटंब बनकर कार्रवाई करेंगे, यह आने वाले दिनों में ही स्पष्ट होगा।
इतिहास से पता चलता है कि विव्यापी महामारी का सामना करने पर भी विभिन्न देशों के बीच होड़ और संघर्ष खत्म नहीं होता। करीब सौ वर्ष पहले जब दुनिया में ‘स्पेनिश फ्लू’ की महामारी आई थी तो भी तत्कालीन विशक्तियों ने शांति और सहयोग का रास्ता नहीं पकड़ा था। स्पेनिश फ्लू महामारी तीन साल तक चली थी। इसमें करीब पांच करोड़ लोग मारे गए थे। इस महामारी के बाद यूरोप में संघर्ष का दौर नहीं रुका तथा इसकी पराकाष्ठा द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में हुई।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शांति और सहयोग पर आधारित एक नई विश्व व्यवस्था कायम करने के लिए एक जोरदार मुहिम शुरू की है। पहले उन्होंने दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के नेताओं से साझा रणनीति पर चर्चा की। इसके बाद उन्होंने प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों के संगठन जी-20 की शिखर वार्ता के आयोजन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। मोदी का साफ संदेश था कि महामारी के प्रसार के लिए एक दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय विभिन्न देशों को सहयोग की भावना से युद्धस्तर पर काम करना चाहिए। मोदी का इशारा कोरोना वायरस के प्रसार के लिए चीन या अमेरिका को दोषी ठहराने वाले बयानों की ओर था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस महामारी को ‘चीनी वायरस’ या ‘वुहान वायरस’ के रूप में संबोधित कर रहे हैं। यह गौर करने वाली बात है कि वुहान में ही प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग में पहली अनौपचारिक शिखर वार्ता हुई थी। इस शिखर वार्ता में मतभेदों को विवाद में न बदलने देना और विवादों को संघर्ष में न बदलने देने का प्रतिपादन किया गया था, इसे ‘वुहान भावना’ का नाम दिया गया था। मोदी का यह संदेश है कि चीनी वायरस या वुहान वायरस की बजाय वुहान भावना की विव्यापी अभिव्यक्ति हो जिससे इस महामारी से निपटा जा सके। मोदी ने कोरोना वायरस के साथ भी आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और विश्व अर्थव्यवस्था में स्थायित्व के लिए भी एक अंतरराष्ट्रीय मतैक्य बनाने और संयुक्त रूप से कदम उठाने पर जोर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर पिछले गुरुवार को सऊदी अरब में जी-20 देशों का आपातकालीन शिखर सम्मेलन हुआ। यह सम्मेलन वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुआ, जिसकी अध्यक्षता सऊदी अरब के सुल्तान सलमान बिन अब्दुल अजीज अल-सऊद ने की। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस संकट को लेकर कहा कि वैिक समृद्धि और सहयोग के लिए हमारे दृष्टिकोण के केंद्र बिंदु में आर्थिक लक्ष्यों के बजाय जनकल्याण होना चाहिए। उन्होंने विश्व में अधिक अनुकूल प्रतिक्रियात्मक और सस्ती मानव स्वास्थ्य सुविधा प्रणाली के विकास पर भी जोर दिया। उन्होंने मानव के विकास के लिए चिकित्सीय शोध को स्वतंत्र रूप से खुलकर साझा करने की अपील भी की।
सऊदी अरब के शाह सलमान ने समूह के नेताओं से अपील की कि वे वैश्विक महामारी से निपटने के लिए कारगर एवं समन्यविक कार्रवाई के लिए बढ़ें। जी-20 के देशों ने कोरोना महामारी के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव को रोकने के लिए पांच ट्रिलियन डॉलर देने का निर्णय किया है। लेकिन केवल आशावादी बयानों से इस महामारी को कभी भी चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके लिए फौरी तौर पर कोई विशेष योजना बनाए जाने की महती आवश्यकता है। कोरोना वायरस की चुनौती दुनिया में शांति, सहयोग और स्थायित्व का एक अवसर बनेगी या नहीं, यह विश्व नेताओं की समझ और बुद्धिमत्ता पर निर्भर है।
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