पक्षियों की मौत : अनर्थ करता पर्यावरणीय असंतुलन
देश की खारे पानी की सबसे बड़ी झील राजस्थान की सांभर झील में अभी तक 25 हजार से ज्यादा प्रवासी पंछी मारे जा चुके हैं।
पक्षियों की मौत : अनर्थ करता पर्यावरणीय असंतुलन |
पक्षियों की इतनी भयानक मौत पर राजस्थान हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है। राज्य सरकार से 2010 में भी लगभग इसी तरह हुई पक्षियों की मौत के बाद गठित कपूर समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के अमल की जानकारी मांगी है। सभी जानते हैं कि आर्कटिक क्षेत्र और उत्तरी ध्रुव में जब तापमान शून्य से चालीस डिग्री तक नीचे जाने लगता है, तो वहां के पक्षी भारत की ओर आ जाते हैं।
भारत में खारे पानी की सबसे विशाल झील ‘सांभर’ का विस्तार 190 किमी. व लंबाई 22.5 किमी. है। अधिकतम गहराई तीन मीटर तक है। अरावली पर्वतमाला की आड़ में स्थित झील राजस्थान के तीन जिलों-जयपुर, अजमेर और नागौर तक विस्तारित है। 1996 में 5,707.62 वर्ग किमी. जल ग्रहण क्षेत्र वाली झील 2014 में 4700 वर्ग किमी. में सिमट गई। चूंकि भारत में नमक के कुल उत्पादन का लगभग नौ फीसद-196000 टन-नमक यहां से निकाला जाता है, इसलिए नमक माफिया यहां जमीन पर कब्जा करता रहता है। इस साल दीपावली बीती ही थी कि हर साल की तरह सांभर झील में विदेशी मेहमानों के झुंड आने शुरू हो गए।
नये परिवेश में वे खुद को व्यवस्थित कर पाते कि उससे पहले ही उनकी गर्दन लटकने लगी, पंख बेदम हो गए, न चल पा रहे थे और न ही उड़ पा रहे थे। लकवा जैसी बीमारी से ग्रस्त पक्षी तेजी से मरने लगे। एनआईएचएसडी भोपाल का दल आया। उसने सुनिश्चित कर दिया कि मौत र्बड फ्लू के कारण नहीं हैं। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली के एक दल ने मृत पक्षी के साथ-साथ वहां के पानी और मिट्टी के नमूने लिए और जांच कर बताया कि मौतों का कारण ‘एवियन बटुलिज्म’ नामक बीमारी है। यह बीमारी ‘क्लोस्ट्रिडियम बटूलिज्म’ नाम के बैक्टीरिया की वजह से फैलती है। आम तौर पर मांसाहारी पक्षियों को ही होती है। सांभर झील में भी यही पाया गया कि मारे गए सभी पक्षी मांसाहारी प्रजाति के थे। लेकिन बहुत से वैज्ञानिक मौतों के पीछे ‘हाइपर न्यूट्रिनिया’ को मानते हैं। नमक में सोडियम की मात्रा ज्यादा होने पर पक्षियों के तंत्रिका तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वे खाना-पीना छोड़ देते हैं, और उनके पंख व पैर में लकवा हो जाता है। कमजोरी के चलते प्राण निकल जाते हैं। माना जा रहा है कि पक्षियों की प्रारंभिक मौत हाइपर न्यूट्रिनिया से ही हुई। बाद में उनमें ‘एवियन बटुलिज्म’ के जीवाणु विकसित हुए और ऐसे मरे पक्षियों का जब अन्य पंछियों ने भक्षण किया तो बड़ी संख्या में उनकी मौत हुई। बारीकी से देखें तो पता चलेगा कि मेहमान पक्षियों की मौत के मूल में सांभर झील के पर्यावरण के साथ लंबे समय से की जा रही छेड़छाड़ भी है। सांभर सॉल्ट लिमिटेड ने नमक निकालने के ठेके कई कंपनियों को दे दिए जो मानकों की परवाह किए बगैर गहरे कुंए और झील के किनारे दूर तक नमकीन पानी एकत्र करने की खाई बना रहे हैं। फिर परिशोधन के बाद गंदगी को इसी में डाल दिया जाता है। विशाल झील को छूने वाले किसी भी नगर-कस्बे में घरों से निकलने वाला हजारों लीटर गंदा-रासायनिक पानी हर दिन झील में मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन की त्रासदी है कि इस साल औसत से कोई 46 फीसदी ज्यादा पानी बरसा। इससे झील के जल ग्रहण क्षेत्र का विस्तार हो गया। चूंिक इस झील में नदियों से मीठे पानी की आवक और अतिरिक्त खारे पानी को नदियों में मिलने वाले मागरे पर भयंकर अतिक्रमण हो गए हैं, इसलिए पानी में क्षारीयता का स्तर नैसर्गिक नहीं रह पाया।
भारी बरसात के बाद यहां तापमान फिर से 27 डिग्री के पार चला गया। इससे पानी का क्षेत्र सिकुड़ा और उसमें नमक की मात्रा बढ़ गई। इसका असर झील के जलचरों पर भी पड़ा। हो सकता है कि इसके कारण मरी मछलियों को दूर देश से थके-भूखे पहुंचे पक्षियों ने खा लिया हो और उससे ‘एवियन बटुलिज्म’ के बीज पड़ गए हों। सांभर सॉल्ट लिमिटेड ने झील का एक हिस्सा एक रिसॉर्ट को दे दिया है। यहां का सारा गंदा पानी इसी झील में मिलाया जाता है। जब पंछी को ताजी मछली नहीं मिलती तो झील में तैर रही गंदगी, मांसाहारी भोजन के अपशिष्ट या कूड़ा खाने लगता है। ये बातें भी पक्षियों के इम्यून सिस्टम के कमजोर होने और उनके सहजता से विषाणु के शिकार हो जाने के कारक हैं। पर्यावरण के प्रति बेहद संवेदनशील पक्षी अपने प्राकृतिक पर्यावास में मानव दखल, प्रदूषण, भोजन के अभाव से भी परेशान हैं। प्रकृति संतुलन और जीवन-चक्र में प्रवासी पक्षियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इनका इस तरह मारा जाना असल में अनिष्टकारी है।
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