सरोकार : चिली का विरोध गान भारत का निष्ठुर सच
यहां हिंदुस्तान में रेप, हिंसा और हत्याओं की खबरें रोज आ रही हैं, वहीं चिली में रेप कल्चर और विक्टिम शेमिंग के खिलाफ औरतें जोरदार प्रदर्शन कर रही हैं।
चिली में रेप कल्चर और विक्टिम शेमिंग के खिलाफ औरतों का जोरदार प्रदर्शन |
लड़कियां, औरतें किस देश में सुरक्षित हैं? शायद कहीं नहीं। चिली में इस सिलसिले में विरोध प्रदर्शन करने वाला एक गाना-अ रेपिस्ट इन योर पाथ-धीरे-धीरे अनेक देशों में गूंज रहा है। इस गाने पर सबसे पहले नवम्बर के आखिर में परफॉर्म किया गया था। इसके बाद गाने का वीडियो वायरल हुआ और पूरे लैटिन अमेरिका में फैल गया। मैक्सिको, कोलंबिया, स्पेन, फ्रांस, यूके सभी जगह औरतों ने सड़कों पर इकट्ठे होकर इसे गाया। चिली के वेलपेरेइसो शहर के फेमिनिस्ट थियेटर ग्रुप लेटेसिस का लिखा यह गाना कोई विरोध गीत नहीं था। बस इसके शब्द औरतों को इतने भाए कि सड़कों पर इसे लेकर उतर गई।
दरअसल, यह गाना अर्जेंटीना की थ्योरिस्ट रिता सेगेटो के एक अध्ययन पर आधारित है। इसके मुताबिक यौन हिंसा नैतिक नहीं, राजनैतिक समस्या है। गीत के बोल पुलिस, न्याय व्यवस्था, राजनैतिक ताकतों से सवाल करते हैं-द रेपिस्ट इज यू/इट्स द कॉप्स/द जजेज/द स्टेट/द प्रेजिडेंट (बलात्कारी आप हैं, पुलिस, जज, राज्य, राष्ट्रपति हैं)। एक पंक्ति है-एंड इट्स नॉट माइ फॉल्ट/नॉर वेयर आई वॉज/नॉर व्हॉट आई वोर (और यह मेरी गलती नहीं, न ही मेरी यह गलती है कि मैं किसी खास जगह पर थी, न यह कि मैंने क्या पहना था)। चिली में यौन उत्पीड़न के रोजाना औसतन 42 मामले दर्ज किए जाते हैं। 2018 में केवल 25.7 फीसद मामलों पर फैसला हुआ था।
इस मामले में भारत चिली को बहुत पीछे छोड़ देता है। एनसीआरबी कहता है कि 2017 में रेप के 33,000 मामले दर्ज किए गए यानी एक दिन में 90 से ज्यादा और एक घंटे में चार के करीब मामले। रेप के मामलों में अभी भी हमारा पुलिस तंत्र इतना संवेदनशील नहीं है, जिसकी अपेक्षा पूर्व जस्टिस वर्मा को थी। एनसीआरबी के आंकड़े कहते हैं कि पुलिस को 2017 में रेप के 46 हजार 965 मामलों की जांच करनी थी। इसमें लंबित 14 हजार 406 मामले और नये दर्ज 32 हजार 559 मामले थे। इनमें से महज 28 हजार 750 मामलों में ही चार्जशीट दाखिल हो सकी जबकि 4 हजार 364 केस बंद कर दिए गए और 13 हजार 765 केस अगले साल के लिए लंबित कर दिए गए। 2017 में ही पुलिस को रेप के बाद हत्या के कुल 413 मामलों की जांच करनी थी, जिनमें से 108 मामले 2016 के लंबित थे और 223 मामले नये थे। इनमें से 211 मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई, जबकि 11 मामले बंद कर दिए गए और 109 फिर लंबित हो गए। रेप जैसे मामलों में लंबी प्रक्रिया के कारण सबूत या तो मिट जाते हैं, या मिटा दिए जाते हैं, और सबूतों के अभाव में आरोपित दोषी नहीं साबित हो पाते। 2017 में 43 हजार 197 रेप आरोपित गिरफ्तार किए गए। इनमें से 38 हजार 559 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई, लेकिन केवल 6 हजार 957 आरोपित ही दोषी साबित हो पाए। इसी वर्ष रेप के बाद हत्या के मामलों में 374 गिरफ्तार हुए, लेकिन केवल 48 ही दोषी साबित हो पाए।
हैदराबाद एनकाउंटर ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या न्याय व्यवस्था को इन पर विचार नहीं करना चाहिए। ट्रायल में तेजी लाने की बजाय इस फौरी तरीके से क्या हासिल होगा.. आप कितने आरोपितों को मुठभेड़ में मारेंगे। अपराधी पूरी व्यवस्था है जो ऐसे अपराधियों को जन्म देती है, और फिर उनके लिए उन्हें न्यायिक तरीके से दंडित नहीं करती।
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