बतंगड़ बेतुक : यह दुल्हन तो हरजाई निकली
झल्लन ने अधूरी-सी सर खुजाई पूरी की, हल्की सी जम्हाई ली और बोला, ‘ददाजू, दुल्हन धर्मनिरपेक्षता तो पूरी तरह लूज करेक्टर हरजाई निकली।
बतंगड़ बेतुक : यह दुल्हन तो हरजाई निकली |
बताइए, एक दूल्हे के गले में वरमाला डाल आई, दूसरे के साथ भांवर पूरी कर आई और फिर सुहागरात से पहले ही पहले दूल्हे के पास भाग आई।’
झल्लन की बात सुनकर हमें हंसी आई, कहा, ‘हमने तो पहले ही कहा था झल्लन कि दुल्हन हीनचरित्र है, पता नहीं कब किसे फुनगी पर चढ़ा दे, कब किसे धूल चटा दे, कब किसकी सुहागरात लूट ले और कब किसकी सेज सजा दे।’ झल्लन बोला, ददाजू, आपने कभी नीति शतक के हवाले से राजनीति को रंडी बताया था, आपका यह कथन तब हमारी समझ में नहीं आया था।’ हमने कहा, ‘कोई बात नहीं, देर आए दुरुस्त आए, पर राजनीति के रंग तेरी समझ में तो आये। जिधर पद, पैसा, प्रभुत्व मिले राजनीति की रंडी उधर हो जाती है और बिना शील-संकोच के किसी भी कुबड़े, कुंठित, कापुरुष के साथ सो जाती है। इसके सिद्धांत लालच होते हैं, इसकी विचारधारा लोलुपता होती है, यह किसी की भी नहीं होती मगर सबकी होती है।’ झल्लन बोला, ‘वैसे ददाजू, सबकी होने में एक बड़ा भाव तो है, इसमें एक लुभावन चाव तो है।’ हमने कहा,‘इसमें तुझे क्या भाव दिखता है,क्या चाव लगता है?’ झल्लन मुस्कुराया,‘अब बताओ ददाजू, किसी एक से जुड़ जाओ, उसी से बंध जाओ और इसी बंधन को मर्यादा मानकर न तबियत से खा पाओ, न कोई रुतबा दिखा पाओ, न शान-शौकत बढ़ा पाओ, बस आदर्श में बंधे-बंधे घुट-घुटकर मर जाओ। इससे तो अच्छा है कि जिसकी अंटी में पैसा हो उसके गले लग जाओ, जो कुछ दे सकता हो उससे चिपक जाओ, सत्ता पाओ और पैसा बनाओ।’ हमने कहा, ‘आखिर तेरा कोई दीन-इमान है कि नहीं? जब चाहे तब पलट जाता है, दुल्हन की तरफ दिखाई देता है और दूल्हे की तरफ खड़ा हो जाता है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम तो झल्लन हैं, आम आदमी हैं। क्या फर्क पड़ता है कि हम नदी में बहें या नाले में बहें, इसके रहें या उसके रहें पर उनका सोचिए, जो राष्ट्रवाद, भ्रष्टाचार विरोध, नैतिकता-शुचिता की बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं, बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं पर सत्ता के छोटे से लालच में भद्दी ओछई पर उतर आते हैं।’
झल्लन की बात में दम था। हमने कहा, ‘तू ठीक कह रहा है झल्लन, जो बड़े होने का दावा करते हैं उन्हें बड़प्पन दिखाना होता है, जो नीति और विधान की बात करते हैं उन्हें नैतिक विधिवत आचरण करना होता है मगर यहां तो जो जितने बड़े थे उन्होंने उतने ही छोटेपन का परिचय दिया, जिनसे सद्आचरण की उम्मीद थी उन्होंने उतना ही घटिया आचरण किया।’ झल्लन बोला,‘लेकिन ददाजू, यह बात तो आप कह रहे हैं, देश के मीडिया ने तो नैतिकता-आचरण का सवाल ही नहीं उठाया, उसने तो गंदभरी राजनीतिक उठापटक को सुगंधमय रोचक फिल्मी थिल्रर की तरह दिखाया। जिसने जितनी क्षुद्र राजनीति की उसे उतना ही बड़ा चाणक्य बताया, जिसकी घनघोर निंदा बनती थी उसका भरपूर यशोगान गाया। लगा ही नहीं कि राजनीति गहरे गर्त में उतर गयी है, नैतिकता पूरी तरह मर गयी है।’ हमने कहा, ‘सत्ता के लिए जो खेल हुआ है, लगता है आगे वह और अधिक धूर्तता से खेला जाएगा, जो जितना छलकपट कर सत्ता पाएगा वह उतना ही बड़ा चाणक्य बन जाएगा, अनुकरणीय हो जाएगा।’
झल्लन बोला, ‘छोड़िए ददाजू, नकार की बात छोड़िए सकार सोचिए, एक पुत्र ने राजा बनने का अपने स्वर्गीय पिता से जो वादा किया था उसे कैसे पूरा किया है इसकी थोड़ी तारीफ तो कीजिए।’ हमने कहा,‘स्वर्गीय पिता से क्या वादा किया गया था, क्या वचन दिया गया था यह हमें नहीं पता, मगर जनता से किया गया वादा हमें याद है, उसका क्या हुआ ये बता?’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, जनता से किया गया वादा भी कोई वादा है, इस वादे को पूरा करने में सुख कम कष्ट ज्यादा है। लेकिन पिता से किये वादे में सत्ता है, प्रभुत्व है, शान है और भरपूर मान है। अब आप बताइए, जनता से किये वादे पर ध्यान दिया जाएगा या पिता से किया गया वादा पूरा किया जाएगा?’
हमने कहा, ‘झल्लन, तू पूरी तरह भ्रष्ट हो गया है, अंदर से पूरी तरह नष्ट हो गया है। तभी इस तरह की बकवास कर रहा है, जनता से किये वादे को वादा ही नहीं समझ रहा है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, न आप मुल्क हैं न मुल्क की तकदीर, सिर्फ पिटी लकीर के लुटे फकीर हैं। जब लोकतंत्र के माने बदल रहे हैं, अच्छे-बुरे, सही-गलत के नये मानक ढल रहे हैं, विधान-परिपाटी के पुराने रूप गल रहे हैं, तब आप हैं कि नैतिकता की टुकरिया उठाये चल रहे हैं। देखिए ददाजू, दूल्हे ने हिंदुत्व का मौर हटा दिया है, दुल्हन ने धर्मनिरपेक्षता का घूंघट उठा दिया है, दोनों ने मिलकर नीति-सिद्धांत का सड़ता हुआ कूड़ा जला दिया है। ददाजू, आगे की राजनीति उनकी इसी तर्ज पर चलेगी, यही देश की तकदीर लिखेगी। अब आप चाहें तो उन्हें बधाई दे आइए या फिर यहां बैठकर नैतिकता की फालतू डुगडुगी बजाइए।’
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