पद्मावती विवाद : क्यों हम नाक कटवाने पर आमादा हैं
इसी सप्ताह अभिव्यक्ति की आजादी पर सुप्रीम कोर्ट के कड़े फैसले के बाद भी देश में पद्मावती को लेकर बहुत सारे लोगों की भुजाएं फड़क रही हैं। युवाओं का खून उबाल मार रहा है। बहुत से शहरों में नौजवान लड़कियों तक को रानी पद्मावती सती माता के रूप में नजर आ रही हैं।
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पद्मावती का जौहर था ही ऐसा, जिस पर गर्व किया जा सके। ये सच है या कहानी है इसकी सच्चाई भी खोजी और खोदी जा रही है। फिर भी हम सभी ने, जो इतिहास के विद्यार्थी नहीं रहे हैं, महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी के जरिए पद्मावती को पढ़ा और जाना है। एक महाकाव्य की नायिका के रूप में। एक नायिका जिसका रूप अप्रतिम था। जिसमें समर्पण था अपने पति के लिए। समर्पण इस हद तक कि जब एक शासक ने उसको हासिल करने की कोशिश की तो उसने अपनी जीवन लीला ही खत्म कर ली।
तकरीबन अवधी में लिखे गए महाकाव्य में जायसी ने कहानी को अपने ही तरीके से लिखा है। हीरामन नाम का सुग्गा सिंघल द्वीप (अब के श्रीलंका) से निकल भागता है। चित्तौड़ पहुंच कर राजा रतन सिंह से अपने राजा गंधर्वसेन की बेटी राजकुमारी पद्मावती के रूप-सौंदर्य का वर्णन करता है। रूप की ऐसी मूर्ति की प्रशंसा सुन कर रतन सिंह सिंघल द्वीप पहुंच जाता है। सुग्गा वहां जा कर पद्मावती से रतन सिंह का प्रेम-निवेदन करता है। राजकुमारी आती है और रतन सिंह को अपने गढ़ में आने को कहती है। रतन सिंह वहां पहुंच तो जाता है लेकिन पकड़ा जाता है। बाद में किसी तरह राजा गंधर्वसेन अपनी बेटी की शादी पहले से विवाहित रतन सिंह से कर देते हैं।
चित्तौड़गढ़ आकर राजा पद्मावती के साथ रहते हैं। लेकिन इसी दरम्यान उनके दरबार का एक तांत्रिक नाराज होकर अलाउद्दीन खिलजी के दरबार चला जाता है। वहां वह पद्मावती के सौंदर्य का वर्णन करता है। खिलजी उससे प्रभावित होकर चित्तौड़गढ़ पर हमला कर देता है। वहां से रतन सिंह को धोखे से गिरफ्तार करके पकड़ कर दिल्ली ले जाता है। इधर रानी पद्मावती अपने राज्य के महान योद्धा गोरा बादल से राजा को छुड़ाने का वचन लेती है। गोरा-बादल सात सौ पालकियों में योद्धाओं को लेकर दिल्ली जाते हैं और खिलजी को संदेश करते हैं कि ‘पद्मावती अपनी सेविकाओं के साथ आई हैं। राजा रतन सिंह से अखिरी बार मिल कर आपकी बन जाने को तैयार हैं।’ अनुमति मिलने पर योद्धा हमला करके राजा को छुड़ाकर निकल लेते हैं। चित्तौड़गढ़ पहुंचते हैं।
जायसी के मुताबिक इससे पहले कुंभलनेर के राजा देवपाल रानी पद्मावती को प्रेम संदेश भेज चुके रहते हैं। पद्मावती इसका जिक्र रतन सिंह से करती है। रतन सिंह देवपाल से युद्ध करने पहुंच जाते हैं। वहां देवपाल को पराजित कर लेते हैं, लेकिन चित्तौड़गढ़ पहुंचते पहुंचते रतन सिंह की मौत हो जाती है। खिलजी भी रतन सिंह का पीछा करते करते चित्तौड़गढ़ पहुंच जाता है लेकिन तब तक रानी पद्मावती और दूसरी रानी नागमति दोनों अपने पति रतन सिंह के साथ सती हो चुकी होती हैं।
ये तो कहानी हुई जायसी की। इसमें कितना इतिहास है, ये इतिहास वाले जानें, लेकिन कभी इस पूरी कहानी पर किसी समाज को आपत्ति नहीं हुई। बल्कि इसे साहित्य की एक उद्दात (सबलाइम) रचना माना जाता है। बहुत से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में इसे जगह दी गई है। पढ़ा और पढ़ाया जाता है। सूफी रचनाकार की इस रचना का आध्यात्मिक मतलब भी निकाला जाता है। सुग्गा को गुरू का दर्जा दिया जाता है, तो रानी नागमति को लौकिक जीवन है जिसे छोड़कर गुरू के कहने पर रतन सिंह अपने इष्ट से मिलने मौत के दरवाजे तक जाता है। फिर पद्मावती भी उसे ऐसा ही प्रेम करती है कि अपना उत्सर्ग कर देती है।
खैर मलिक मोहम्मद जायसी की सबलाइम रचना को दरकिनार कर आज पद्मावती को सती का दर्जा देकर उसे सती मैया बताने वाली युवतियों के प्रति दया ही की जा सकती है। आखिरकार एक ऐसी प्रथा के नाम पर पद्मावती को पूजने की बात करना बंद दिमाग वालों का ही काम कहा जा सकता है।
इन सबसे इतर पद्मावती का चरित्र निभाने वाली दीपिका की नाक काटने का फरमान जारी करने वालों, हवा में तलवार भांजने वालों पर तो दया भी नहीं आनी चाहिए। अजीब हालत हो गई है। देश आजाद है। अभिव्यक्ति की आजादी पर गुरुवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने जोरदार फैसला दिया है। फिर भी ये फतवाबाजी। हद है। एक प्रदेश का मुख्यमंत्री पहले से ही चिट्ठी लिख रहा है फिल्म रिलीज हुई तो अव्यवस्था फैल जाएगी। इस तरह की संकीर्ण सोच हमे कहां ले जा रही है। किस व्यवस्था का हम समर्थन कर रहे हैं। कोई किसी जाति के नाम पर एकजुट हो रहा है कोई दूसरी जाति का झंडा बुलंद कर रहा है। इस तरह की जातिबंदी से किसे फायदा हो रहा है।
फिल्म को फिल्म की तरह क्यों नहीं लिया जा रहा है। मनोरंजन की एक महाकथा के तौर पर। फिल्मकार को जो ठीक लगा उसने बनाया। देखने वालों को अच्छा नहीं लगेगा, वे नहीं देखेंगे। मलिक मोहम्मद जायसी ने इतिहास की कुछ घटनाओं को अपने तरीके से जोड़ा और उसे महाकाव्य की शक्ल दे दी। लोगों को पसंद आया। आज तक पढ़ा-पढ़ाया जा रहा है। फिल्म नहीं पसंद आएगी लोग नहीं देखेंगे। लेकिन इससे पहले अपनी नाक क्यों कटवाने पर आमादा हैं कि हम अभी भी लोकतांत्रिक नहीं हैं।
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