घटा सकते हैं भारत की रेटिंग:स्टैंडर्ड एंड पुअर्स

Last Updated 08 Aug 2011 05:21:41 PM IST

स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने चेतावनी दी है कि वह भारत, जापान जैसे देशों की क्रेडिट रेटिंग भी घटा सकता है.


स्टैंर्डड एंड पुअर्स ने चेतावनी दी कि अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था में फिर से नरमी आती है तो भारत समेत एशिया-प्रशांत अर्थव्यवस्थों पर इसका गहरा और लंबा असर पड़ सकता है.

भारत का स्पष्ट रूप से नाम लिये बिना स्टैंर्डड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र की साख पहले से ज्यादा नकारात्मक हो सकती है और कई देशों की रेटिंग घटायी जा सकती है.

अमरीकी संकट से भारत महफूज़- मुखर्जी

क्रेडिट रेटिंग कम किये जाने से आम तौर पर कर्ज महंगा हो जाता है तथा संबंधित देश या कंपनी के लिये स्थिति मुश्किल हो जाती है.

रेटिंग एजेंसी द्वारा अमेरिका की रेटिंग घटाये जाने से दुनिया भर के बाजार में अफरा-तफरी मची हुई है.

क्या कहा है रेटिंग एजेंसी ने

रेटिंग एजेंसी ने कहा, ‘‘जापान, भारत, मलेशिया, ताइवान तथा न्यूजीलैंड की राजकोषीय क्षमता 2008 के पूर्व स्तर के मुकाबले कमजोर हुई है.’’ एजेंसी के अनुसार इन देशों में नरमी का खतरा निरंतर बना हुआ है.

एसएंडपी का यह भी कहना है कि इन देशों की सरकारों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं और बैंकों आदि को संभालने के लिए एक बार फिर सार्वजनिक संसाधनों का इस्तेमाल करना पड़ सकता है.

रेटिंग एजेंसी के अनुसार, यदि आर्थिक वृद्धि की रफ्तार एक बार फिर गिरना शुरू हो गयी तो इसका और गहरा तथा लंबा प्रभाव पड़ेगा.

क्या हुआ था 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट में

उल्लेखनीय है कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के समय भारत सहित तमाम देशों को अपनी अर्थव्यवस्था की गति संभालने के लिए कई प्रोत्साहन पैकेज जारी करने पड़े थे. इन प्रोत्साहनों के तहत सरकारी व्यय में वृद्धि की गयी, ब्याज सस्ता किया गया और कर की दरें कम की गयीं.

उस दौरान भारत ने तीन बार में कुल 1.86 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन दिए जिससे अर्थव्यवस्था को काफी समर्थन मिला. इसी का नतीजा था कि 2009 .10 में अर्थव्यवस्था संभल कर फिर 8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर सकी.

गौरतलब है कि 2008 में आई आर्थिक मंदी के दौरान भारत समेत कई देशों ने मंदी की मार से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए विशेष पैकेज का ऐलान किया था.

उस दौरान भारत ने तीन पैकेजों के ऐलान किए थे. सरकार ने इन पैकेजों के जरिए कुल 1.86 लाख करोड़ की मदद दी थी. इसी के बलबूते भारत ने 2009-10 के दौरान 8 फीसदी की विकास दर हासिल की जबकि 2008-09 के दौरान यही दर 6.8 फीसदी थी. मंदी आने से पहले देश के आर्थिक विकास की दर 9 फीसदी थी.

उथल पुथल की आशंका बरकरार

एसएंडपी द्वारा अमेरिका की साख सर्वोत्तम ‘एएए’ से घटा कर ‘एए प्लस’ कर दिए जाने से विश्व के वित्तीय और पूंजी बाजार में उथल पुथल होने की आशंका व्याप्त है.

अमेरिका में पैदा हुए संकट का असर भारतीय शेयर बाज़ार पर भी दिखा और सोमवार को बीएसई का बेंचमार्क सूचकांक  16,990.18 अंक और एनएसई का निफ्टी 5118.50 के स्तर पर बंद हुआ.

स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने यह भी कहा है कि अगर दुनिया में एक और मंदी आई तो भारत समेत एशिया-प्रशांत के देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर इसका असर बहुत बुरा होगा जो लंबे समय तक रहेगा.

हालांकि, एसएंडपी ने भारत का नाम नहीं लिया लेकिन कहा कि अमेरिका की रेटिंग घटने से एशिया प्रशांत क्षेत्र पर पहले से कहीं ज्यादा नकारात्मक असर होगा और कई देशों की रेटिंग घट सकती है.

वित्त मंत्री ने निवेशकों को आश्वस्त किया

इस मामले पर भारतीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि अमेरिका और यूरोप के मौजूदा आर्थिक संकट का भारत पर असर पड़ सकता है, लेकिन भारत चुनौतियों से निपटने में सक्षम है. उन्होंने भारतीय बाज़ारों के निवेशकों को आश्वस्त करते हुए कहा, 'भारत की अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व मजबूत हैं. भारत कई दूसरे देशों की तुलना में आर्थिक चुनौतियों का सामना ज़्यादा बेहतर ढंग से कर सकता है.' उन्होंने कहा कि अमेरिका में पैदा हुए आर्थिक संकट का भारत में होने वाले विदेशी पूंजी निवेश और कारोबार पर असर होगा.

उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल जैसी कमॉडिटी के दाम में कमी के चलते देश में महंगाई को लेकर मौजूद दबाव में कमी आएगी.











 



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