ऑनलाइन बेइज्जती बनाम ऑफलाइन बेइज्जती

Last Updated 01 Nov 2011 12:12:20 AM IST

वैसे तो इस देश में इज्जत बची ही किसकी है, जो हम अपने को लेकर इतने परेशान रहें. जिन खिलाड़ियों को पब्लिक ने पूजा, बाद में उनकी ही पिटाई भी कर दी. बड़े-बड़े नेता तक अंदर हैं. बड़े बड़े अफसर लोग तिहाड़ में हैं.


फिर बताओ सेफ कौन है, मतलब इज्जत रही किसकी! किसी कायदे के से आदमी को लेकर भी डर लगता है कि पता नहीं अगली बार इसका नाम न आ जाये. इज्जत का टोटा हो गया है. बड़े बड़े इज्जतदारों पर बुरी बीत रही है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इज्जत वगैरह के मामले अब कोई सेफ नहीं है. कभी भी कुछ भी हो सकता है.

पर साहबजी, आमने-सामने की बेइज्जती बहुत दिल पर लग जाती है. ऑनलाइन बेइज्जती में मसला उतना दिल पर नहीं लगता. एक बैंक से ऑनलाइन ट्रांजेक्शन कर रहा था, साइट ने मैसेज दिखाया- फंड्स इनसफीशिएंट. अपना सा मुंह लेकर वेबसाइट बदल दी. बदला हुआ मुंह कैसे लगा, यह भी कोई देख नहीं पाया.

ऑफलाइन बैंकिंग यानी आमने-सामने की बैंकिंग में यही मसला यूं होता- मिसेज खन्ना बैंक के काउंटर पर  बैठकर हिकारत के भाव से देखतीं और कहतीं- आपके एकाउंट में फंड तो है ही नहीं. मैं शरमाता हुआ निकल आता तो पीछे से आवाज सुनायी देती- कैसे-कैसे फुक्के गरीब आ जाते हैं बैंक में. फिर बैंक का गार्ड भी मेरी तरफ देखकर हंसता. यानी बहुआयामी, बहुस्तरीय बेइज्जती के बाद बैंक से बाहर आता.

ऑनलाइन काम आसान रहता है. मशीन को मालूम नहीं होता कि ये वाले बहुत फुक्के हैं. आमने-सामने की बेइज्जती में कोई सुंदरी अगर बेइज्जती करे तो बहुत बुरा लगता है.

पर इसका मतलब यह ना माना जाये कि बाकी पार्टयिां बेइज्जती के लिए फ्री हैं. ऑनलाइन पता नहीं लगता कि बेइज्जती का कमांड किसने दिया है, सुंदरी ने या कुछ कम सुंदरी ने. और बुरा ना मानें, आनलाइन ट्रांजेक्शन में कोई आपकी अठन्नी भी नहीं मार सकता. वरना होता तो रेल रिजर्वेशन कराया और पचास पैसे वापस लेने हैं रेल क्लर्क से. तो ऐसा कई बार होता है कि क्लर्क देने में उत्सुक नहीं होता और आप भी लेने में आतुरता नहीं दिखाते. बाद में चाहे मन ही मन कोसते हैं कि दस बार अठन्नी मार ली यानी पांच रु पये गये और पांच रु पये में दो पान आ जाते. आनलाइन ट्रांजेक्शन में आपके एकाउंट से उतनी ही रकम ट्रांसफर होती है, जितनी जरूरी है 289.55 पैसे टाइप.

आमने-सामने के ट्रांजेक्शन में पैंतालीस पैसे छोड़ने पड़ते हैं. ऑनलाइन ट्रांजेक्शन कंजूस टाइप कस्टमरों के लिए बहुत मुफीद साबित होते हैं. यूं भी कह सकते हैं कि लगातार ऑनलाइन ट्रांजेक्शन वाले कस्टमर देर-सबेर कंजूस हो जाते हैं. पच्चीस पैसे तक के लिए सेंसिटिव हो जाते हैं. तो आइये, ऑनलाइन बेइज्जती का स्वागत करें.

आलोक पुराणिक
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