करों पर अधिकार
खनिजों पर देय रॉयल्टी कोई कर नहीं है और संविधान के तहत राज्यों के पास खदानों और खनिजयुक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है।
करों पर अधिकार |
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र द्वारा खदानों और खनिजों पर लगाए गए हजारों करोड़ रुपये के करों की वसूली पर फैसला दिया। झारखंड और ओडिशा जैसे खनिज समृद्ध राज्यों ने इन करों की वापसी के लिए अदालत से आग्रह किया था।
नौ न्यायाधीशों की खंडपीठ ने राज्यों से इस पर लिखित दलीलें मांगी हैं। 8:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी नहीं है। संविधान की दूसरी सूची की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत संसद को खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति नहीं है।
पीठ ने माना कि खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 राज्यों को खदानों तथा खनिजों पर कर लगाने से प्रतिबंधित नहीं करता। 1989 के शीर्ष अदालत के फैसले में कहा गया था कि खनिजों पर रॉयल्टी कर है।
उसमें रॉयल्टी को वह भुगतान बताया गया था जो उपयोगकर्ता पक्ष बौद्धिक संपदा या अचल संपत्ति-परिसंपत्ति के मालिक को देता है। ये राज्य हजारों करोड़ की वसूली पिछली तारीख से आदलत के मार्फत करवाना चाहते हैं। सामाजिक व्यवस्था में राज्य यथासंभव सामाजिक, आर्थिक, विकास संबंधी, सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, आरोग्यता, शिक्षा जैसे साधन मुहैया कराता है।
राज्य सरकारें सभी व्ययों तथा कर निर्धारण की जिम्मेदारी निभाती हैं। राज्यों और केंद्र के दरम्यान कई बार खींचतान की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। खासकर जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार होती हैं, उन्हें केंद्र की नीतियों या आर्थिक मदद को लेकर सहयोगपूर्ण रवैया न रखने जैसी शिकायतें आम हैं।
नि:संदेह केंद्र संविधान के तहत कानून बनाता है और राष्ट्रीय स्तर की नीतियों के विकास और कार्यान्वयन का जिम्मा उसी का होता है परंतु राज्यों के अधिकारों की पूरी तरह अनदेखी नहीं कर सकता।
ओडिशा और झारखंड प्रमुख खनिज उत्पादक राज्य हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही। इसलिए अदालत का यह फैसला उनके विकास में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
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