किसानों की सुनवाई जरूरी
न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की कानूनी गारंटी और कृषि ऋण माफी सहित अन्य मांगों को लेकर किसान आंदोलन फिर शुरू किया जाएगा।
सुनवाई जरूरी |
संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल अलग-अलग किसान संगठनों का कहना है कि वे प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, लोक सभा और राज्य सभा के सदस्यों को ज्ञापन सौंपेंगे। इस बार दिल्ली कूच करने की बजाय देशव्यापी विरोध की तैयारी कर रहे हैं। महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा को वे प्रमुखता देंगे।
इन राज्यों में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं। फसल बीमा, किसानों को पेंशन बिजली के निजीकरण को बंद करने के साथ सिंधु और टिकरी सीमा पर शहीद किसानों का स्मारक बनाने की मांग भी कर रहे हैं। समर्थन मूल्य को लेकर यह आंदोलन 2020 में शुरू हुआ था।
यूं तो इसे बड़े किसानों का आंदोलन कहा जा रहा है लेकिन किसानों का एक वर्ग मोदी सरकार की कृषि नीतियों से संतुष्ट नहीं है। सरकार की तरफ से मिले आासन और आम चुनाव के दौरान आंदोलन कुछ वक्त के लिए ठहर सा गया था। देश में छोटे किसानों की तादाद बहुत है। दूसरे वे लोग हैं, जो कृषि कायरे के जरिए जीवन यापन करते हैं।
उन सबको इन आंदोलनों या मांगों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। हालांकि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार हर देशवासी को है। वह सरकार के समक्ष अपनी कोई भी मांग रखने को आजाद है। मगर पिछले आंदोलन के दरम्यान प्रदर्शनकारियों के कारण कई स्थानों पर जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। आगजनी और पथराव हुआ था।
सुरक्षाबलों पर हथियार भी प्रयोग हुए। इसी दरम्यान पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा के शंभू बार्डर पर धरनारत किसानों को हटाने के आदेश दिए हैं। राज्य सरकार को भी बैरिकेड हटाने और चड़ीगढ़-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग खोलने का आदेश दिया है।
पांच महीनों से अवरुद्ध इस मार्ग के खोलने से कारोबारियों और नियमित यात्रियों को होने वाली असुविधा से निजात मिल सकेगी। हम कृषि प्रधान देश हैं इसलिए उनकी जरूरतों और मांगों की अनदेखी नहीं की जा सकती। मगर उन्हें भी उग्र विरोध से बचना चाहिए। अड़ियल रुख दिखाने की बजाय सरकार को भी छोटे किसानों के हितों की रक्षा में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए।
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