सांसद पर सख्ती
दिल्ली हाई कोर्ट से तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले को तगड़ा झटका लगा है। केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी की पत्नी लक्ष्मी पुरी को मानहानि के मामले में कोर्ट ने उन्हें पचास लाख रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया है।
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लक्ष्मी संयुक्त राष्ट्र की पूर्व सहायक सचिव हैं। अदालत ने माफीनामा प्रमुख अंग्रेजी अखबार में छपवाने और इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करने को भी कहा है, जो छह माह तक नजर आना चाहिए। लक्ष्मी की याचिका के अनुसार गोखले ने 2021 में 13 और 23 जून को पुरी दंपति पर 2006 में स्विट्जरलैंड में काले धन से घर खरीदने की बात कही थी। गोखले द्वारा पोस्ट किया गया था कि स्विस बैंक खातों और विदेशी काले धन के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय धन शोधन की जांच करे।
अदालत ने वादी के खिलाफ आगे भी कोई अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से रोका है। साथ ही, उनकी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान की भरपाई कोई भी राशि नहीं कर सकने की बात भी कही है। फिलवक्त लक्ष्मी पुरी किसी औपचारिक भूमिका में नहीं हैं परंतु उनकी निजी उपलब्धियों और राष्ट्र सेवा पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता।
हालांकि अदालती कार्यवाही के दौरान साकेत गोखले अपने रुख पर कायम रहे। कहना गलत नहीं होगा कि साक्ष्य मौजूद होने पर ही उन्हें सार्वजनिक प्लेटफार्म पर इस तरह के आरोप लगाने थे। खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले गोखले राहुल गांधी से प्रभावित रहे हैं पर कांग्रेस से 2019 में उन्होंने संबंध तोड़ लिया था। क्राउड फंडिंग द्वारा जुटाए गए पैसों की हेराफेरी के आरोपों में 2022 में गोखले को गुजरात पुलिस गिरफ्तार भी कर चुकी है।
मनी लॉन्ड्रिंग के आरापों में ईडी यानी इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट के शिकंजे में भी वह आ चुके हैं। दागदार छवि के बावजूद साकेत गोखले दूसरों के चरित्र पर कीचड़ उछाल कर अपने पद की गरिमा को भी चुटहिल कर रहे हैं।
रही बात राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की तो उसका भी तो कोई स्तर होना चाहिए। राम मंदिर के खिलाफ और प्रधानमंत्री की अघोषित संपत्ति जैसे मामलों पर याचिकाएं लगा कर सिर्फ विवाद उत्पन्न करना राजनेता को शोभा नहीं देता। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को भी अपने इस प्रवक्ता पर सख्ती करनी चाहिए। इससे उनके दल की छवि भी कम धूमिल नहीं होती। यही लोकतंत्र की खूबसूरती है, उच्च सदन का सदस्य होने के बावजूद मानहानि का हक नहीं मिल सकता।
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