धर्मांतरण के मामले में अपनी गिरहबान में झांकें
भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों, नफरत फैलाने वाले भाषणों और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के घरों और प्रार्थना स्थलों को ध्वस्त करने के मामलों में चिंताजनक वृद्धि हुई है।
धर्मांतरण के मामले में अपनी गिरहबान में झांकें |
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर विदेश विभाग की वाषिर्क रिपोर्ट पेश करते हुए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिकन ने ये बातें कहीं। उन्होंने दुनिया भर में लोगों की धार्मिक आजादी की रक्षा के लिए काफी जद्दोजहद करने की भी बात उठाई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 28 में से 10 राज्यों में धर्मातरण पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून हैं, जिनमें से कुछ राज्य विवाह के उद्देश्य से जबरन धर्मातरण के खिलाफ दंड भी लगाते हैं। इसमें दुनिया के तकरीबन दो सौ देशों की धार्मिक स्थिति का आकलन किया गया है।
हालांकि भारत इसे पहले से ही खारिज करता रहा है और इसे प्रकाशित करने वाले आयोग को पक्षपाती बताता है। सिखों, ईसाइयों, यहूदियों, मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों के खिलाफ हिंसा से निपटने में मोदी सरकार की नाकामी की बात कर रही है यह रिपोर्ट।
इसमें 2023 में गैर- सरकारी संगठनों ने ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की 687 घटनाओं का जिक्र भी किया गया है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने, मणिपुर हिंसा, ईसाइयों पर हमले, चर्च में तोड़-फोड़ और धर्मातरण कानून के तहत हिरासत में रखे लोगों की चर्चा भी है।
चीन, ईरान, रूस, सऊदी अरब, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और बर्मा के साथ भारत का नाम रखे जाने पर सरकार द्वारा जताई गई आपत्ति उचित है। कहना गलत नहीं है कि मोदी सरकार अपनी हिन्दुत्ववादी विचारधारा के चलते बहुसंख्यकों को प्रभावित करने में सफल है।
इसलिए हर साल अमेरिका को इस पर पुन: विचार करने की बात करने की बात कर रस्मादायगी कर लेती है, जबकि सरकार को अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी छवि सुधारने के प्रयास करने चाहिए। संविधान कहता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है और धार्मिक आजादी मौलिक अधिकार है।
इसलिए सभी धर्मावलंबियों की सुरक्षा का दायित्व सरकार का है। वहीं अमेरिका में अेतों को लेकर जो पक्षपात होते हैं, उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। दूसरों पर उंगली उठाते हुए, खुद की तरफ मुड़ी उंगलियां भी देखनी होंगी।
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