अवधारणा बदलते केजरी

Last Updated 13 May 2024 01:51:41 PM IST

अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आते ही ताल ठोकने लगे हैं। वे भाजपा नेता एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संभावनाओं पर संशय पैदा कर रहे हैं।


अवधारणा बदलते केजरी

उनकी तर्ज पर गारंटीमय हो रहे हैं। कल रविवार को उन्होंने लोक-लुभावनी 10 गारंटी दीं, वे भाजपा के लिए-खुद उनके लिए भी-तलवार की तेज धार होने वाली हैं। इनमें अन्यों की तरह ही कुछ अतिवाद हैं। जैसे चीन से जमीन लेना, दो करोड़ रोजगार देना और हर घर को बिजली एवं गरीबों को मुफ्त बिजली देने की घोषणा। पर यह कांग्रेस के घोषणापत्र के साथ मिलकर भाजपा का घेराव बनाती है।

चुनाव प्रचार के जिस एकल ध्येय से सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी, उसमें वे धार दे रहे हैं। मोदी को उन्हीं की बोली-बानी और कार्यशैली में जवाब दे रहे हैं। तो क्या इसीलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया था ताकि वे गुजरात में विकल्प का अर्थ न बन सकें? वस्तुत: ऐसा है नहीं। स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी गिरफ्तारी को वैध माना है। आबकारी मामले के मेरिट पर भी प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है। उनको दो जून को समर्पण का आदेश दिया है।

जब यह सब है ही तो फिर अंतरिम जमानत क्यों? कोर्ट का कहना है कि वे आदतन अपराधी नहीं, चुने सीएम हैं, चुनाव पांच साल में आता है। प्रचार करने देने में कोई हर्ज नहीं है। फिर झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन पर इसी नजरिए से विचार क्यों नहीं हुआ जबकि चुनाव उनकी भी पार्टी लड़ रही है?

न्यायालय का यह ‘सेलेक्टिव एप्रोच’ आम जनमानस को पच नहीं रहा है। इसलिए भी कि ईडी की इस ठोस दलील की उपेक्षा की गई है कि तब हरेक विचाराधीन राजनीतिक कैदी को चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर करना होगा। इससे जमानत का नया आधार बनेगा। इससे समानता के सिद्धांत का विभाजन होगा।

केजरीवाल की अंतरिम रिहाई इसलिए अटपटी लग रही है। अब इसका राजनीतिक-न्यायिक संदेश जो भी हो, पर दिल्ली के मुख्यमंत्री बाहर हैं। वे इंडिया गठबंधन के मजबूत और विजयी होने की अवधारणा बनाने में राहुल गांधी की आक्रामकता से मिलकर अपना योगदान दे रहे हैं।

तीन चरणों के चुनावों में मतों की गिरावट में भाजपा की अंदरूनी लड़ाई और मोदी के भाषणों में उठाए मुद्दों के आधार पर जो परिदृश्य बन रहा है, वह सत्ता-प्रतिष्ठानों के तमाम अंगों पर पड़ने वाले दबावों को जाहिर करता है। जनता के संदर्भ में एक नए आकलन पर विचार शुरू होने का संकेत देता है। विपक्ष के लिए यह सांत्वना है। पक्ष-विपक्ष के आशावाद पर अंतिम मुहर परिणाम ही होगा।
 



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