हिमालयी क्षेत्रों में परियोजनाओं को लेकर चिंता

Last Updated 01 Apr 2024 01:23:27 PM IST

हिमालयी क्षेत्रों में रेलवे, बांध, जल संबंधी परियोजनाओं और चार-लेन की राजमार्ग से जुड़ी सभी ढांचागत विशाल परियोजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की केंद्र सरकार से मांग की गई है।


परियोजनाओं को लेकर चिंता

‘पीपुल्स फॉर हिमालय’ अभियान का संयुक्त रूप से नेतृत्व कर रहे संगठनों ने शनिवार को एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में लोक सभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों के लिए पांच सूत्री एक मांग पत्र पेश किया। इन परियोजनाओं से हिमालय जैसे बनिस्बत कच्चे या कहें कि युवा पहाड़ के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान से चिंतित संगठनों का कहना है कि इन परियोजनाओं की बहुआयामी समीक्षा किया जाना जरूरी हो गया है।

इसलिए कि इनके क्रियान्वयन के क्रम में उद्योगपति पहाड़ की घाटियों और चोटियों का खुला और मनमाफिक दोहन कर रहे हैं, और इस कारण आने वाली आपदाओं का दंश स्थानीय लोगों को सहना पड़ रहा है। कहीं सुरंग बैठ जाती है, तो कहीं शहर का शहर जमींदोज होने की कगार पर है। जलवायु कार्यकताओं में इस बात को लेकर नाराजगी है कि  बड़ी परियोजनाओं के जरिए ‘विकास’ के इन तौर-तरीकों से स्थानीय लोग प्रभावित होते हैं। जरूरी है कि परियोजना शुरू करने से पूर्व उन्हें विश्वास में लिया जाए।

जनमत संग्रह और विचार-विमर्श करके ही किसी सर्वमान्य निर्णय पर पहुंचा जाए। कानूनन अनिवार्य हो कि परियोजना शुरू करने से पहले इनके पारिस्थितिकीय नुकसान के आकलन में जनभागीदारी भी होगी। अभी हो यह रहा है कि प्रोजेक्ट से प्रभावितों के पुनर्वास के लिए करदाताओं के धन का इस्तेमाल किया जाता है, और पहाड़ों की चोटियों और घाटियों का शोषण करने वाले उद्यमियों की कोई जवाबदेही नहीं होती। वे लाभ कमाकर निकल चुके होते हैं, और पारिस्थितिकीय व पर्यावरणीय क्षति से स्थानीय आबादी हलकान और परेशान होती है।

चरवाहे, भूमिहीन, दलित, जनजातियां और महिलाएं नीतिगत खामियों के चलते दरपेश आपदाओं और जलवायु संकट से सर्वाधिक त्रस्त होती हैं, जबकि उनका आफत को न्योता देने वाले मानव-निर्मित कारकों में योगदान नहीं होता। जलवायु कार्यकर्ताओं ने ब्रह्मपुत्र नदी तथा उसके बेसिन में प्रस्तावित पनबिजली विकास परियोजनाओं के प्रति भी आगाह किया है। जरूरी है कि जनभावना को ‘विकास के ज्वर’ से ग्रस्त न होने दिया जाए।



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