भारत की स्थिति भ्रष्टाचार के मामले में बीते सालों से और खराब

Last Updated 01 Feb 2024 01:05:36 PM IST

भारत की स्थिति भ्रष्टाचार के मामले में बीते सालों से और खराब हो गई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भ्रष्टाचार के मामले में भारत का ओवरऑल स्कोर 39 था जो इस साल बढ़ कर 40 हो गया है।


भारत की स्थिति भ्रष्टाचार के मामले में बीते सालों से और खराब

भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक की ताजा रपट में बताया गया है कि 2023 में 180 देशों की सूची में भारत 93वें स्थान पर पहुंच गया।

विशेषज्ञों व उद्योग क्षेत्रों के लोगों के अनुसार 180 देशों व सार्वजनिक क्षेत्र को भ्रष्टाचार के स्तर पर रखा जाता है। इनमें दो तिहाई से ज्यादा देशों का स्कोर सौ में से पचास के नीचे है। औसतन स्कोर 43 के आसपास है।

23 देश अपने न्यूनतम स्कोर पर आ चुके हैं। बाकियों ने पिछले दशक में कोई प्रगति नहीं की है जो दुनिया में बढ़ते भ्रष्टाचार की तरफ इशारा कर रहा है। डेनमार्क में सबसे कम भ्रष्टाचार है।

इसके बाद बाद फिनलैंड, न्यूजीलैंड व नार्वे हैं। हमारे पड़ोसी देशों पाकिस्तान, श्रीलंका, चीन व बांग्लादेश की रैंकिंग बहुत अच्छी नहीं है।

चीन (76) ने बीते दशक में भ्रष्टाचार के लिए सैंतीस लाख से ज्यादा सार्वजनिक अधिकारियों को दंडित कर आक्रामक कार्रवाई की थी।

रिपोर्ट में अंदेशा व्यक्त किया गया है कि अगले वर्ष भी भ्रष्टाचार में लगाम लगाने की दिशा में कोई सार्थक सुधार नहीं होंगे क्योंकि एशिया प्रशांत क्षेत्र में यह चुनावी वर्ष है।

भारत समेत बांग्लादेश, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, सोलोमन द्वीप, दक्षिण कोरिया और ताइवान में चुनाव होने हैं।

मोदी सरकार द्वारा लगातार भ्रष्टाचारमुक्त व्यवस्था की बातें बड़े जोर-शोर से किए जाने के बावजूद कोई सुधार नहीं नजर आ रहा है।

ईडी और आयकर विभाग के बढ़ते छापों और आय से अधिक आमदनी जुटाने वालों पर सख्तियां होने पर भी समाज में भ्रष्टाचार का दीमक बढ़ता जा रहा है।

भ्रष्टाचार और  सरकार की जवाबदेही न होने से विश्व शांति और सुरक्षा पर तो खतरा मंडराता ही है, आमजन में भी निराशा फैल जाती है, और व्यवस्था में उनका विश्वास डगमगा जाता है।

भारत के लिए कहना गलत नहीं होगा कि आनन-फानन में नोटबंदी लागू करने के पीछे सरकार की मंशा भले ही देश से काला धन बाहर करने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की थी, जिसमें बड़ी धन राशि खर्च हुई, मगर इसके नतीजे शिफर हैं।

इस रिपोर्ट के बाद इसकी जवाबदेही के लिए समूची व्यवस्था को पाबंद करने की जरूरत को नकारा जाना कतई अनुचित है।
 



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