ISRO का कमाल : ब्लैक होल के खंगाले जाएंगे रहस्य

Last Updated 07 Jan 2024 01:19:17 PM IST

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो - ISRO) ने ब्लैकहोल यानी कृष्ण विवर के रहस्यों को खंगालने के नजरिए से एक्स-रे पोलरिमीटर उपग्रह (एक्सपोसैट) का प्रक्षेपण नव वर्ष के पहले दिन कर दिया है।


ब्लैक होल के खंगाले जाएंगे रहस्य

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी)-सी 58 रॉकेट अपने साठवें अभियान पर प्रमुख पेलोड ‘एक्सपोसैट’ और 10 अन्य उपग्रह लेकर गया है। इस अभियान की उम्र करीब पांच वर्ष है।

इसरो के अनुसार यह उपग्रह खगोलीय स्रोतों से एक्स-रे उत्सर्जन का अंतरिक्ष आधारित ध्रुवीकरण माप में अध्ययन करने के लिए इसरो का पहला अभियान है। इसके पहले केवल अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने दिसम्बर-2021 में सुपरनोवा विस्फोट के अवशेषों को ब्लैक होल से निकलने वाले कणों की धाराओं और अन्य खगोलीय घटनाओं के अध्ययन के लिए उपग्रह भेजा था, जिसका जीवन काल केवल दो वर्ष था जो अब पूरा हो रहा है। एक्सपोसैट के दस पेलोड में से एक केरल के लालबहादुर शास्त्री तकनीक संस्थान द्वारा निर्मित है, जिसे महिला वैज्ञानिकों के समूह ने बनाया है।

भारत ही नहीं दुनिया भर के वैज्ञानिक इस बात को लेकर उत्सुक हैं कि यह उपग्रह पांच वर्ष में कृष्ण विवर के किन अनसुलझे रहस्यों को जानने में मददगार साबित होगा। इसे लेकर जिज्ञासा चरम पर है। दरअसल, एक्सपोसैट नाम के इस उपग्रह के अध्ययन का दायरा विस्तारित है और यह अंतरिक्ष में मृत तारों की संरचना का अध्ययन करने के अलावा ब्लैकहोल तथा अन्य न्यूट्रोन सितारों के निकट की विकिरण की प्रक्रिया को भी जानने का प्रयास करेगा। यह ब्रह्मांड में सबसे अधिक चमकने वाले तत्वों के रहस्यों से पर्दा उठाएगा। भारत अंतरिक्ष अभियानों के परिप्रेक्ष्य में अनूठी उपलब्धियां दर्ज करा रहा है। इनकी लागत अन्य देशों के अंतरिक्ष अभियानों की तुलना में कई गुना कम है। इसरो के एक्सपोसैट की लागत 250 करोड़ रुपइ है, और उम्र है पांच साल, जबकि अमेरिका के इसी प्रकृति के उपग्रह की लागत 188 मिलियन डॉलर थी और इसकी कार्यावधि थी महज दो साल।

चंद्रयान, मंगलयान और आदित्य एल को भारत ने न्यूनतम लागत में तैयार करके प्रक्षेपित करने में सफलता पाई है। इसी दिशा में गगनयान भी जल्द उड़ान भरेगा। अपने छह दशकों के अंतरिक्ष अभियानों में भारत ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं, जो हमारे वैज्ञानिकों की जिज्ञासा, परिश्रम और समर्पण के प्रतिफल हैं। दरअसल, ब्रह्मांडीय विचलनों के चलते पृथ्वी पर चल रहे जीवन को लेकर अनेक चुनौतियां और आशंकाएं पैदा होने लगी हैं। चूंकि सौर्यमंडल के सारे ग्रह गुरुत्वाकषर्ण बल के जरिए ही परस्पर जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को संतुलित रखते हुए गतिशील हैं। इस रहस्य को हमारे मनीषियों ने हजारों साल पहले जान लिया था। इसीलिए उन्होंने वेदों में कहा है, ‘यथा पिंडे, तथा ब्रह्मांडे’!

मंदाकिनी और तारों का अचानक विलोपित हो जाना और अपने पीछे एक कृष्ण विवर छोड़ जाना सौरमंडल के लिए खतरे का संकेत है। इनका द्रव्यमान इतना सघन और गुरुत्वाकर्षण बल इतना तीव्र होता है कि प्रकाश की किरणों भी इनके पार नहीं जा पाती हैं। यह इन्हें अवशोषित कर लिया जाता है और ये सब प्रक्रियाएं किस तरह से घटित होती हैं, इन रहस्यों से ही पर्दा उठाने का काम भारतीय उपग्रह एक्सपोसैट करेगा।

प्रमोद भार्गव


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