भूकंप से तबाही : तालाब बचाना जरूरी

Last Updated 27 Feb 2025 01:00:50 PM IST

बीते सोमवार की सुबह दिल्ली के लोगों की नींद एक भयानक आवाज और उसके बाद धरती के डोलने से खुली। हालांकि रिक्टर पैमाने पर इसकी माप चार के आसपास थी लेकिन चूंकि इसका केंद्र दिल्ली में ही धौलाकुआं के आसपास था, सो इसकी धमक अधिक थी।


हालांकि इस स्थान के आसपास बीते 32 साल में 446 बार धरती कांपी है। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) के मुताबिक, ये भूकंप 1.1 से 4.6 तीव्रता के रहे। इनके पीछे मुख्य वजह यहां के भूगर्भ में मौजूद सोहना और मथुरा फॉल्ट की भूगर्भीय हलचलों को माना जाता है। 

एनसीएस का अध्ययन कहता है कि धौलाकुआं इलाका एक तरह से अरावली की पहाड़ियों की शुरुआत पर बसा हुआ है। माना जाता है कि यहां लाखों वर्ष पहले नदी या बड़ा जलाशय मौजूद रहा होगा जो बाद में अपनी जगह से खिसक गया। इसके चलते बनी खाली जगह पर ढीली मिट्टी आदि जमा हो गई। आसपास चट्टानें भी मौजूद हैं। यहां पर सोहना और मथुरा फॉल्ट के चलते होने वाली भूगर्भीय हलचलों से पैदा होने वाली ऊर्जा ढीली मिट्टी और चट्टानों वाले इस क्षेत्र से बाहर निकल आती है। इस बार आए भूकंप के दौरान तेज आवाज भी इसी ऊर्जा के बाहर निकलने से उत्पन्न हुई थी। 

एनसीएस ने दिल्ली एनसीआर में भूकंप के बीते 63 सालों के आंकड़ों के आकलन में पाया है कि अतिक्रमण और अवैध कब्जों की भेंट चढ़ रहे जलाशयों के ऊपर इमारतें भले खड़ी हो गई हों लेकिन उनके नीचे पानी होने से भूकंप के झटके लगते रहते हैं। भारत के कुल क्षेत्रफल का 54 फीसद भूकंप संभावित क्षेत्र के रूप में चिन्हित है। भूकंप संपत्ति और जन हानि के नजरिए से भीषण प्राकृतिक आपदा है। एक तो इसका सटीक पूर्वानुमान संभव नहीं है, दूसरा, इससे बचने के सशक्त तरीके भी नहीं हैं। 

महज जागरूकता और अपने आसपास को इस तरह से सज्जित करना कि कभी भी धरती हिल सकती है, बस यही है इसका निदान। हमारी धरती जिन सात टेक्टोनिक प्लेटों पर टिकी है, यदि इनमें कोई हलचल होती है, तो धरती कांपती है। एनसीएस के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में आने वाले भूकंप अरावली पर्वतमाला के नीचे बने छोटे-मोटे फॉल्टों के कारण आते हैं, जो कभी-कभी ही सक्रिय होते हैं। यहां प्लेट टेक्टोनिक्स की प्रक्रिया भी धीमी है। शुरुआत में भूकंप के झटके सामान्य होते थे। लेकिन जैसे-जैसे इस महानगर में जल निधियां सूखना शुरू हुई, 2000 के बाद से भूकंप की तीव्रता में तेजी आ रही है। खासकर यमुना के सूखने और उसके कछार की जमीन पर निर्माण ने भूकंप से नुकसान की आशंका को प्रबल कर दिया है। धरती की भीतर भी पैलियों चैनल अर्थात भीतरी जल मार्ग हैं, और इन जल मागरे के सूखने और नष्ट होने से धरती के धंसने और हिलने की आशंका में इजाफा हुआ है। 

विदित हो भारत ऑस्ट्रेलियन प्लेट पर टिका है, और हमारे यहां अधिकतर भूकंप इस प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराने के कारण आते हैं। भूकंप के झटकों का कारण भूगर्भ से तनाव-ऊर्जा उत्सर्जन होता है। यह ऊर्जा अब भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा में बढ़ने और फॉल्ट या कमजोर जोनों के जरिए यूरेशियन प्लेट के साथ इसके टकराने के चलते एकत्र हुई है। जानना जरूरी है कि हिमालयी भूकंपीय क्षेत्र में भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट के साथ टकराव होता है, और इसी से प्लेट बाउंड्री पर तनाव ऊर्जा संग्रहित हो जाती है, जिससे क्रस्टल छोटा हो जाता है, और चट्टानों का विरूपण होता है। 

यह ऊर्जा भूकंपों के रूप में कमजोर जोनों एवं फॉल्टों के जरिए सामने आती है। हालांकि कोई भूकंप कब, कहां और कितनी अधिक ऊर्जा (मैग्निीट्यूट) के साथ आ सकता है, इसकी कोई सटीक तकनीकी विकसित हो नहीं पाई है। किसी क्षेत्र की अति संवेदनशीलता को उसकी पूर्व भूकंपनीयता, तनाव बजट की गणना, सक्रिय फॉल्टों की मैपिंग आदि से समझा जा सकता है। जरूरी है कि जिन इलाकों में बार-बार धरती डोल रही है, वहां भू वैज्ञानिक अध्ययनों का उपयोग करते हुए उपसतही संरचनाओं, ज्यामिति तथा फॉल्टों एवं रिजों के विन्यास की जांच की जाए। नरम मृदाओं की मोटाई जानने के लिए मृदा द्रवीकरण अध्ययन किए जाएं। 

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के सवा तीन करोड़ लोगों की बसावट का चालीस फीसद अनधिकृत है तो 20 फीसद के आसपास पुराने निर्माण। बाकी रिहायशों में बमुश्किल पांच फीसद के निर्माण को ही सत्यापित किया जा सका है कि यह भूकंपरोधी है। समूचे भारत में आवासीय परिसरों के हालात एक जैसे हैं। एक तो लोग इस चेतावनी को गंभीरता से ले नहीं रहे कि उनका इलाका भूकंप-संवेदी है, दूसरा, उनका लोभ उनके घरों को संभावित मौत घर बना रहा है। बहुमंजिला मकान, छोटे से जमीन के टुकड़े पर एक के ऊपर एक डिब्बे जैसी संरचना, बगैर किसी इंजीनियर की सलाह के बने परिसर, छोटे से घर में ही संकरे स्थान पर रखे ढेर सारे उपकरण और फर्नीचर-भूकंप के खतरे से बचने की चेतावनियों को नजरअंदाज करने की मजबूरी भी हैं, और कोताही भी।

वल्नेरेबिलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की बिल्डिंग मैटीरियल एंड टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउंसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के 91.7 फीसद मकानों की दीवारें पक्की ईटों से जबकि कच्ची ईटों से 3.7 फीसद मकानों की दीवारें बनी हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक, कच्ची या पक्की ईटों से बनी इमारतों में भूकंप से सबसे ज्यादा तबाही होती है। राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई),  हैदराबाद के शोध से स्पष्ट हुआ है कि भूकंप का कारण धरती की कोख से जल का अंधाधुंध दोहन भी है।

भू-विज्ञानी के मुताबिक, भूजल धरती के भीतर लोड यानी भार के तौर पर उपस्थित होता है। इसी लोड के चलते फॉल्ट लाइनों में भी संतुलन बना रहता है। समझना जरूरी है कि जिन इलाकों में यदा-कदा धरती कांपती रहती है, वहां पारंपरिक जल-निधियों-तालाब, झील, बावड़ी, छोटी नदियों-को पानीदार बनाए रखना जरूरी है। जरूरी है कि शहरों में आबादी का घनत्व कम किया जाए, जमीन पर मिट्टी की ताकत मापे बगैर बहुमंजिला भवन और बेसमेंट बनाने पर रोक लगे। भूजल के दोहन पर सख्ती हो। भूकंप प्रवण इलाकों के मकानों में भूकंपरोधी रेट्रोफिटिंग करवाई जाए। सबसे बड़ी बात कि जल निधियों को सूखने से जरूर बचाया जाए।
(लेख मेंविचार निजी हैं)

पंकज चतुर्वेदी


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