विचाराधीन कैदी को अनिश्चितकाल कैद में नहीं रख सकते, SC ने कहा, त्वरित सुनवाई मौलिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि मुकदमे का शीघ्र निपटारा एक मौलिक अधिकार है और किसी विचाराधीन कैदी को अनिश्चितकाल तक कैद में नहीं रखा जा सकता।
विचाराधीन कैदी को अनिश्चितकाल कैद में नहीं रख सकते, SC ने कहा, त्वरित सुनवाई मौलिक अधिकार |
न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए की, जो बिहार में दर्ज एक मामले में लगभग चार साल दो महीने से न्यायिक हिरासत में था।
न्यायालय ने उल्लेख किया कि इस मुकदमे में सुनवाई जल्द पूरी नहीं होने वाली है। शीर्ष अदालत का आदेश रौशनंिसह नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर आया जिसने अपनी जमानत याचिका खारिज किए जाने के पटना उच्च न्यायालय के जून में आए फैसले को चुनौती दी थी।
पीठ ने कहा, ‘किसी विचाराधीन कैदी को अनिश्चितकाल तक कैद में नहीं रखा जा सकता।
पीठ ने कहा, मुकदमे का शीघ्र निपटारा एक मौलिक अधिकार है, जिसका हमारे न्यायशास्त्र में बखूबी उल्लेख किया गया है। सिंह के वकील ने पीठ को सूचित किया कि याचिकाकर्ता अक्टूबर 2020 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से हिरासत में है और मामले की सुनवाई अब भी बेनतीजा है।
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि मामले में अभियोजन पक्ष के तीन और गवाहों से जिरह की जानी है। पीठ ने उल्लेख किया कि राज्य सरकार के वकील के अनुसार, मुकदमे में देरी का कारण मामले में आरोपियों में से एक द्वारा दायर किया गया आरोपमुक्ति अर्जी है।
इसने कहा, ‘कैद की अवधि और इस तथ्य पर विचार करने के बाद कि मुकदमे का जल्द निस्तारण नहीं होने वाला, हम याचिकाकर्ता रौशनंिसंह को जमानत देना उचित समझते हैं।’
पीठ ने कहा कि निचली अदालत द्वारा उचित जमानत शत्रें लगाई जा सकती हैं।
पूर्व में, उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत को निर्देश दिया था कि जितनी जल्दी हो सके, छह महीने के भीतर सुनवाई पूरी की जाए।
| Tweet |