90 साल के देवेगौड़ा और 85 साल के फारुख अब्दुल्ला ने बनाई विपक्षी एकता की रणनीति!
2024 का लोकसभा चुनाव कितना महत्वपूर्ण होने वाला है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के दो बड़े और बुजुर्ग नेता भी शांत बैठने को तैयार नहीं हैं। बात यहाँ हो रही है, नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फारुख अब्दुल्ला और जेडीएस के प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा की ।
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फारुख अब्दुल्ला और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा |
देवेगौड़ा जहां इस समय लगभग 90 साल के हो चुके हैं, वहीं फारुख अब्दुल्ला लगभग 85 साल के हैं। इस उम्र में आम तौर से लोग आराम करने की स्थिति में आ जाते हैं जबकि ये दोनों नेता आज भी सक्रिय हैं। दोनों मिलकर 2024 लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि ये दोनों नेता विपक्ष की किस पार्टी के नेता को समझायेंगे और विपक्षी एकता के लिए अपना-अपना योगदान किस तरह से देंगे।
विपक्षी एकता को लेकर जो पहल की जा रही है, उसमें फारुख अब्दुल्ला शुरू से लगे हुए हैं। विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में अपनी अहम् भूमिका निभाने वाले बिहार के मुख्यामंत्री नीतीश कुमार और फारुख अब्दुल्ला की बहुत पहले मुलाक़ात हो भी चुकी है। फारुख अब्दुल्ला नीतीश कुमार को पसंद भी करते हैं। फारुख अब्दुल्ला इसके पहले भी विपक्ष के कई नेताओं से मुलाक़ात कर चुके हैं। जबकि एच डी देवेगौड़ा शायद अपनी बढ़ती उम्र और स्वस्थ्य कारणों की वजह से कम ही यात्रा कर पाते हैं। लेकिन उनकी भी शायाद ऐसी इच्छा है कि 2024 में विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर भाजपा का मुकाबला करें। बुधवार को जब फारुख अब्दुल्ला कर्नाटक पहुंचे तो अचानक सियासत गरमा गई।
फारुख अब्दुल्ला अपना स्टैंड क्लियर कर चुके हैं। वो विपक्ष के साथ खड़े हैं। लेकिन दिक्कत जेडीएस की है। अभी हाल में कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए हैं। कांग्रेस और जेडीएस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। यानी कर्नाटक चुनाव में दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या जेडीएस कांग्रेस के साथ आना चाहेगी? माना जा रहा है कि फारुख अब्दुल्ला जेडीएस को यही समझाने गए हैं कि उन्हें विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए कुछ समझौते कर लेने चाहिए। फारुख अब्दुल्ला काफी सीनियर नेता हैं। एच डी देवेगौड़ा से उनकी बहुत पहले से नजदीकियां रहीं हैं। संभव है कि उन्हें फारुख अब्दुल्ला की सलाह पसंद आ जाए।
यह सत्य है कि भाजपा के बाद कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की बात हो ही नहीं सकती। यह भी सत्य है कि कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद ना सिर्फ कांग्रेस के प्रति अन्य पार्टियों का नजरिया बदल गया है बल्कि कांग्रेसियों का भी मनोबल बढ़ चूका है। ये दोनों नेता समय की नजाकत और देश के मिजाज को भी भली-भाँती समझ रहे होंगे। शायद उन्हें इस बात का आभास है कि अगर विपक्ष की पार्टियां सही तरीक़े से मिलकर आगामी लोकसभा का चुनाव लड़ लें तो संभव है कि 2024 लोकसभा की तस्वीर कुछ अलग ही होगी। शायद यही सोचकर फारुख अब्दुल्ला ने बुधवार को देवेगौड़ा से मुलाक़ात की।
विपक्ष की तमाम पार्टियों के नेता भी इन दोनों बुजुर्ग नेताओं की ऊर्जा और उनके मनोबल को देख रहे होंगे। शायद इनकी मेहनत से अन्य नेता भी जरूर प्रभावित होंगे और शायद यह सोचकर और ज्यादा उत्साह के साथ विपक्षी एकता को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश करेंगें। अब देखना यह होगा कि आगामी 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षियों की बैठक फारूक अब्दुल्ला शामिल होते हैं कि नहीं।
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