सुप्रीम कोर्ट में देर रात दाखिल किए गए हलफनामे पर केंद्र ने अपनी कोविड टीकाकरण नीति का बचाव किया। इस नीति में अंतर मूल्य निर्धारण, खुराक की कमी और धीमी गति से रोलआउट के लिए आलोचना की गई थी।
|
अपनी वैक्सीन नीति पर न्यायिक हस्तक्षेप के खिलाफ आग्रह करते हुए, केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा, "किसी भी विशेषज्ञ की सलाह या प्रशासनिक अनुभव की अनुपस्थिति में, डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और कार्यकारी अधिकारियों को तुरंत समाधान खोजने के लिए बहुत कम मौका मिलता है। इसलिए किसी भी अति उत्साही, और न्यायिक हस्तक्षेप से अप्रत्याशित और अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं ।"
केंद्र ने कहा कि मूल्य का प्रभाव लाभार्थी पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने पहले ही अपने नीतिगत निर्णय को घोषित कर दिया है कि प्रत्येक राज्य अपने निवासियों को वैक्सीन प्रदान करेगा। हर व्यक्ति को निशुल्क वैक्सीन प्रदान की जाएगी।
केंद्र ने कहा कि सम्मानजनक रूप हलफनामे को सम्मिट करते है साथ ही ऐसे गंभीर और अभूतपूर्व संकट के समय में जब राष्ट्र एक आपदा से लड़ रहा है, सरकार के कार्यकारी कामकाज को बड़े हित में नीति बनाने के लिए विवेक की आवश्यकता है।
हलफनामे में कहा गया है कि अभूतपूर्व और अजीब परिस्थितियों के मद्देनजर टीकाकरण अभियान को कार्यकारी नीति के रूप में तैयार किया गया है, जिसे देखते हुए कार्यपालिका की बुद्धिमत्ता पर भरोसा किया जाना चाहिए।
केंद्र ने कहा कि दोनों निर्माता (एक भारतीय कंपनी और एक ब्रिटिश कंपनी के दूसरे लाइसेंसधारी) ने इन टीकों के विकास और निर्माण में वित्तीय जोखिम लिया है । एक पारदर्शी सलाहकार प्रक्रिया में बातचीत के माध्यम से मूल्य निर्धारण पर निर्णय लेना विवेकपूर्ण है।
| | |
|