कांग्रेस ने केन्द्र सरकार से की अपील, कहा- प्रतिष्ठा का प्रश्न ना बनाते हुए सरकार 3 कृषि कानूनों को वापस ले

Last Updated 05 Feb 2021 03:12:47 PM IST

कांग्रेस ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह विवादों में घिरे तीन नये कृषि कानूनों को ‘‘प्रतिष्ठा का प्रश्न’’ नहीं बनाए और इन्हें वापस ले।


सरकार 3 कृषि कानूनों को वापस ले: कांग्रेस

इसके साथ ही पार्टी ने 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा और लाल किले की घटना को किसानों के संघर्ष को बदनाम करने की साजिश करार दिया और इसकी जांच उच्चतम न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश द्वारा कराए जाने की मांग की।    

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए सदन में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने कृषि कानूनों को लेकर बनी टकराव की स्थिति के लिए केंद्र सरकार की ‘‘हठधर्मिता’’ को जिम्मेवार ठहराया और उनकी संवैधानिक वैधता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार आत्मंिचतन करे। इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न मत बनाइए। वापस करिए इन कानूनों को। सुनिए लोगों की बात को।.. और यह (तीनों नये कृषि कानून) होंगे वापस.. यह देश देखेगा।’’    

शर्मा ने कहा कि जब से किसानों का आंदोलन शुरु हुआ, वह 26 जनवरी से पहले तक शांतिपूर्ण था, लेकिन गणतंत्र दिवस के दिन जो हिंसा हुई और लाल किले की घटना हुई उसने किसानों को बदनाम कर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘26 जनवरी की घटना की हम सभी ने निंदा की है। निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। लाल किले की घटना से पूरा देश दुखी हुआ है। उच्चतम न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की अध्यक्षता में इसकी जांच होनी चाहिए।’’      

राष्ट्रपति के अभिभाषण को ‘नीरस’’ और सरकार का ‘‘निराशाजनक प्रशंसा पत्र’’ करार देते इसमें विवादास्पद कृषि कानूनों के उल्लेख को उन्होंने ‘‘अनावश्यक और दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताया और कहा कि सरकार को इससे बचना चाहिए था।      

उन्होंने कहा, ‘‘विवादास्पद कृषि कानूनों को लेकर एक तरफ आंदोलन चल रहा है और दूसरी ओर अभिभाषण में उनकी तारीफ हो रही है। इससे बढकर दुख की बात नहीं हो सकती है।’’      कृषि कानूनों की वैधता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि कृषि राज्य का विषय है और इससे संबंधित कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं।      

सर्वोच्च न्यायालय में लंबित महत्वपूर्ण मामलों को उन्होंने चिंता का विषय बताया और कहा कि संसद सर्वोच्च है और उसे इस मामले को संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि चाहे नागरिकता संशोधन कानून हो या तीनों कृषि कानून, इनसे संबंधित मामलों का उच्चतम न्यायालय को जल्द निपटारा करना चाहिए।      

राजधानी दिल्ली के विभिन्न स्थलों पर चल रहे आंदोलन के इर्दगिर्द सुरक्षा घेरा बढाए जाने को लेकर भी उन्होंने सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि संवैधानिक तौर पर आंदोलन में सरकार बाधाएं नहीं उत्पन्न कर सकती। उन्होंने कहा, ‘‘यह मौलिक अधिकार है। बैरियर हटाइये। जुल्म करना बंद करें। सम्मान करें किसानों का। आग्रह करता हूं। प्रतिष्ठा का प्रश्न ना बनाओ।’’      

शर्मा ने कहा कि लोकतंत्र में जनता की आवाज को सुनना सरकार का दायित्व है लेकिन आज विरोध प्रदर्शन को यह सरकार अपराध करार देती है और उनकी आवाज को लाठी और डंडों से दबा रही है।      

प्रदर्शन स्थलों के आसपास इंटरनेट सेवा बंद किए जाने को लेकर भी उन्होंने सरकार पर निशाना साधा और कहा आज भारत वि का ‘‘इंटरनेट शटडाउन कैपिटल’’ बन गया है।      शर्मा ने कोरोना संक्रमण काल में अध्यादेश के माध्यम से कृषि कानूनों को संसद में लाने और हंगामे के बीच इसे पारित कराये जाने की भी आलोचना की।

राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में हिस्सा ले रहे कांग्रेस के मल्लिकाजरुन खड़गे ने तीनों कृषि कानूनों को तत्काल वापस लिए जाने की मांग करते हुए कहा ‘‘(दिल्ली की) सीमाओं पर इन्हीं कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन कर रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि ये कानून उनके हित में नहीं है।’’  उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान जो कुछ हुआ, वह किसानों को विभाजित करने की साजिश थी।     

खड़गे ने सरकार पर किसानों के साथ किए गए वादे पूरे नहीं करने का आरोप लगाते हुए कहा ‘‘अगर स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू किया जाता तो यह कहा जा सकता था कि प्रधानमंत्री किसानों के साथ खड़े हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’’    

 उन्होंने कहा ‘‘प्रधानमंत्री कांग्रेस की सरकारों पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं बढाया। लेकिन यह सच नहीं है। हमने एमएसपी 219 फीसदी तक बढाया जबकि इसकी तुलना में वर्तमान सरकार के कार्यकाल में बढाया गया एमएसपी बहुत कम है।’’      

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान सम्मान निधि आदि के नाम पर किसानों के साथ केवल धोखा हुआ है जबकि कांग्रेस की सरकार ने किसानों का कर्ज माफ किया था।    

इसी पार्टी के प्रताप सिं बाजवा ने आरोप लगाया कि तीनों कृषि कानून कुछ बड़े कारपोरेट घरानों को लाभ देने के लिए लाए गए हैं।’’  उन्होंने कहा ‘‘कोविड-19 का कहर पूरी दुनिया पर टूटा। अर्थव्यवस्था तबाह हो गई, लोगों की नौकरियां चली गईं, प्रवासी मजदूर बेहाल हो गए। ऐसे में सरकार को इन कानूनों को लाने की क्या जल्दी थी ? क्या कुछ समय तक इंतजार नहीं किया जा

सकता था ? ये कानून किसानों के हित में तो हैं ही नहीं। फिर इन्हें जल्दबाजी में अध्यादेशों का रास्ता चुन कर क्यों लाया गया ?’’    

बाजवा ने कहा ‘‘1971 में बांग्लादेश के लिए हुई लड़ाई में पाकिस्तान के 93 हजार युद्धबंदी हमारे पास थे। हमने दो साल तक उनके खाने पीने रहने का इंतजाम किया। लेकिन आज आपने अपने ही किसानों का बिजली, पानी बंद कर दिया। कल 12 दलों के नेता गाजीपुर गये, उन्हें पुलिस ने अंदर जाने नहीं दिया। क्या यह लोकतंत्र है ?’’    

उन्होंने कहा ‘‘सरकार ने खुद माना है कि इन कानूनों में कमी है। सरकार ने इन कानूनों को डेढ साल तक निलंबित करने की बात भी कही है। फिर ऐसी क्या जिद है कि आप इन कानूनों को वापस नहीं लेंगे?’’    

बाजवा ने कहा ‘‘संसद लोकतंत्र का सर्वोच्च मंदिर है। संसद में इन कानूनों को बिना मतविभाजन कराये बिना पारित कर दिया गया। अब किसान अपना हक किससे मांगेंगे ?’’ उन्होंने कहा ‘‘लाल किले पर 26 जनवरी को जो कुछ हुआ, उसका मुझे बेहद अफसोस है। पंजाबी होने के नाते, सिख होने के नाते मैं इसकी निंदा करता हूं। लेकिन इसके लिए किसे आतंकवादी कहा जा रहा है? हमारे पंजाब में हर माह हमारा एक न एक बच्चा सीमा से तिरंगे में लिपट कर आता है। आतंकवाद का दंश हमने लंबे समय तक सहा है। हमें इसका दर्द पता है।’’     

उन्होंने 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा की उच्चतम न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच कराने की मांग की। उन्होंने कहा ‘‘प्रधानमंत्री कहते हैं कि उनके और किसानों के बीच एक फोन कॉल की दूरी है। पहले यह बताएं कि किसके प्रास प्रधानमंत्री का नंबर है ? किसानों से बात करने की पहल प्रधानमंत्री को करनी चाहिए और तीनों कृषि कानूनों को तत्काल रद्द करना चाहिए।’’
 

भाषा
नई दिल्ली


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