आजादी के प्रतीक लाल किले की गरिमा पर चोट
72वें गणतंत्र दिवस की चमक को अराजक हो गए किसान आंदोलन ने धूमिल कर दिया।
लाल किले पर झंडा फहराने के दौरान ट्रैक्टर परेड में आए किसानों का हुजूम। |
मंगलवार को जिस तरह से उपद्रवियों ने लाल किले पर कब्जा किया और दिल्ली की सड़कों पर कोहराम मचाया, उससे विदेशी मीडिया ने भारत की छवि तो खराब की ही, पाकिस्तान में भी जश्न मनाया गया। लाल किले पर तो इतिहास को कलंकित कर दिया गया। जिस स्थान और पोल पर प्रधानमंत्री 15 अगस्त को हर साल तिरंगा फहराते हैं, वहां निशान साहिब (गुरु द्वारों पर फहराया जाने वाला झंडा) फहरा दिया गया। लाल किले पर निशान साहिब को लहराने की तस्वीरें विश्व भर में वायरल हो गई और भारत विरोधी ताकतों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। पाकिस्तान के कई ट्विटर हैंडलों से इस तस्वीर को ट्वीट किया गया और बताया गया कि भारत का झंडा बदल गया है।
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 62 दिनों से आंदोलनरत किसान मंगलवार को उग्र हो गए। गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर रैली निकालने पर आमादा किसानों को पुलिस रोक नहीं पाई, जबकि दिल्ली पुलिस को आईबी का इनपुट था कि ट्रैक्टर रैली को अनुमति न दें। ये लोग दिल्ली में हुड़दंग मचाने के इरादे से घुस रहे हैं। उसके बावजूद राजनीतिक दबाव में दिल्ली पुलिस ने टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से किसानों को रैली निकालने की अनुमति दी।
किसान नेताओं से आश्वासन भी लिया कि तय मार्ग से ही रैली निकलेगी और फिर आंदोलनकारी वापस अपने स्थानों पर जाकर बैठ जाएंगे, लेकिन गणतंत्र दिवस समारोह समाप्त होने से पहले ही किसान बेकाबू हो गए। उन्होंने दिल्ली पुलिस के साथ किए समझौते को ताक पर रख दिया। टिकरी बॉर्डर से किसान नांगलोई गए और वहां उन्होंने कोहराम मचाया। सिंघु बॉर्डर से जो किसान घुसे, उन्होंने ज्यादा उग्र रूप धारण किया। वे जबरदस्ती लाल किला और आईटीओ तक घुस गए। आईटीओ में पुलिस को कई राउंड आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े और लाठीचार्ज भी करना पड़ा, लेकिन किसानों पर उसका असर नहीं पड़ा, उल्टे किसानों ने कई पुलिसवालों की पिटाई की और उन्हें जख्मी कर दिया।
जिस तरह से किसान नेता सरकार के किसी भी फॉर्मूले को मानने को तैयार नहीं हैं, उससे कुछ लोगों के इरादे साफ झलक रहे थे कि उनका इरादा किसान कानूनों को वापस करना नहीं, बल्कि सरकार विरोधी अभियान चलाना है। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो शाहीन बाग में जुटे थे। सूत्रों का कहना है कि आईबी ने दिल्ली पुलिस को इनपुट भी दिया था कि ट्रैक्टर रैली की अनुमति न दें, क्योंकि इनका इरादा हंगामा खड़ा करना है, लेकिन राजनीतिक दबाव में पुलिस को अनुमति देनी पड़ी और उसका खामियाजा आज पूरी दिल्ली भुगत रही है।
सरकार का मकसद भी पूरा : आंदोलनकारी किसानों के हंगामे के बाद अब सरकार का मकसद भी पूरा हो गया है। सरकार बार-बार कहती थी कि ये आंदोलनकारी किसान नहीं, बल्कि असामाजिक तत्व हैं। लेकिन सरकार ने यह बात जब सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी थी तो कोर्ट ने सबूत मांगे थे। आज यह साबित हो गया कि आंदोलनकारियों के रूप में असामाजिक तत्व और खालिस्तान समर्थक एवं सिख फॉर जस्टिस संगठन काम कर रहे हैं।
भाजपा में मंथन शुरू : भाजपा ने आज के हंगामे पर मंथन किया। पार्टी ने तीनों कृषि कानूनों और आंदोलन के कारण पंजाब व हरियाणा के किसानों के अलावा देशभर के अन्य भागों से उपज रहे किसानों के गुस्से पर चर्चा की। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और महामंत्री संगठन बीएल संतोष के बीच आज लंबी बैठक चली और इसी मुद्दे पर गहन चर्चा हुई। पार्टी को इस बात का भी डर है कि अगर आज के हंगामे को किसान संगठन ने भुनाया तो भाजपा को दिक्कत हो सकती है। पार्टी इस हंगामे का काउंटर करने के लिए भी विचार-विमर्श कर रही है।
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