दादी की तर्ज पर पोते का सियासी स्ट्रोक हो सकता है गेमचेंजर
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ठीक 48 वर्ष बाद वही मास्टर स्ट्रोक खेला है जो 1971 में उनकी दादी इंदिरा गांधी ने खेला था।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एवं स्व. श्रीमति इंदिरा गांधी (फाइल फोटो) |
चुनावी समर में भाजपा से दो-दो हाथ करने को तैयार राहुल गांधी इस चुनाव को गरीबों व अमीरों के बीच की लड़ाई बताकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने की रणनीति पर चल रहे हैं। उनका पूरा फोकस मोदी को पूंजीपतियों का दोस्त बताने व खुद को गरीबों का रहनुमा साबित करने पर है, इसलिए वह लगातार अपने भाषणों में दो तरह के हिंदुस्तान की बातें करते आ रहे हैं। एक हिंदुस्तान अमीरों का है जिसके नेता मोदी हैं तो वहीं दूसरा भारत गरीबों का है जिसकी रहनुमाई कांग्रेस करती है।
गौरतलब है कि 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था और देश की सत्ता पर काबिज हुई थीं। उस समय पूरा विपक्ष उनके खिलाफ लामबंद था लेकिन उनके इस एक नारे ने सारे राजनीतिक अनुमानों को धता बताते हुए पार्टी की झोली में 518 सीटों में से 352 सीटें डाल दी थी। 2019 के चुनाव में अब उसी तर्ज पर भाजपा को घेरने के लिए राहुल ने सोमवार को देश के 25 करोड़ गरीबों को रिझाने का ऐसा सियासी दांव चला जिसकी काट आसान नहीं होगी। देश के 20 फीसद गरीबों को हर साल 72 हजार रुपए देने वाली न्यूनतम आय योजना गेमचेंजर साबित हो सकती है।
पिछले दिनों तीन राज्यों के चुनाव में किसानों की कर्जमाफी योजना के परिणमों से उत्साहित कांग्रेस अध्यक्ष ने अब सियासी पिच पर गरीब कार्ड की गुगली फेंक दी है। उनकी यह गुगली सीधे तौर पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले करोड़ों लोगों को साधने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है। राजनीतिक गलियारों में इसे मोदी के किसानों को छह हजार रुपए सालाना के मास्टर स्ट्रोक की काट के रूप में देखा जा रहा है। मंहगाई और बेराजारी की मार झेल रहे गरीबों को कांग्रेस अध्यक्ष की यह पेशकश यदि रास आ गई तो चुनावी फिजा बदलते देर नहीं लगेगी।
मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में किसान कर्जमाफी के वादे को निर्धारित समय सीमा में लागू करवा कर राहुल यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि वह जो वादा करते हैं उस पर अमल भी करते हैं। उनकी यही जमा पूंजी भाजपा के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
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