Sharad Purnima Vrat Katha : शरद पूर्णिमा का व्रत रख रहे हैं तो जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

Last Updated 27 Oct 2023 10:43:30 AM IST

Sharad Purnima Vrat Katha: शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। आश्विन माह की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा कहलाती है।


Sharad Purnima Vrat Katha

Sharad Purnima Vrat Katha : शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। आश्विन माह की पूर्णिमा ही  शरद पूर्णिमा कहलाती है। इस साल शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर 2023, शनिवार को है। इस दिन विशेष रूप से चंद्रमा की पूजा की जाता है क्योंकि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी से अमृत वर्षा होती है। ये भी कहा जाता है कि चंद्रमा की यह रोशनी रोगों से मुक्ति दिलाने का काम करती है। इस दिन को माता लक्ष्मी की पूजा के लिए भी बहुत खास माना गया है। इस दिन भक्त लक्ष् मातामी को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा से जुड़ी व्रत कथा जिसे पढ़ने से आपको मां का आशीर्वाद मिलेगा।
 
शरद पूर्णिमा व्रत कथा - Sharad Purnima Vrat Katha
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक साहूकार की दो पुत्रियां थी। दोनों ही पुर्णिमा का व्रत रखती थी, लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी। एक दिन उसने पंडितों से इसका कारण पूछा, तब पंडितों ने उसे बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। 

पूर्णिमा का पूरा विधिपूर्वक व्रत करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है। इसके बाद उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके पुत्र पैदा हुआ परन्तु वो शीघ्र ही मर गया। उसने अपने मृत पुत्र को एक पाटे पर लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पटला दे दिया। बड़ी बहन जब पटले पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया।

बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। इसे देखकर बड़ी बहन बोली 'तु मुझपर कलंक लगाना चाहती थी, मेरे बैठने से यह मर जाता'। तब छोटी बहन बोली, यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ।

इसके बाद उसने नगर में पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का संदेश भेजा और सबसे व्रत करवाया और इसका महत्व समझाया। बस तभी से इस व्रत को करने की परंपरा चल गई।   

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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