Indira ekadashi vrat katha : इंदिरा एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा, इसके बिना अधूरी है पूजा
Indira ekadashi vrat - अश्विन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को इन्दिरा एकादशी कहा जाता है। इस व्रत में केवल फलाहार ही करना चाहिए। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
Indira ekadashi vrat katha |
Indira ekadashi vrat katha - आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है जिसके कारण इसका महत्व बहुत अधिक हो जाता है। मान्यता है कि इंदिरा एकदशी में पूजा, दान और व्रत करने से हमारे पितरों को उनके पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है। इसके साथ ही घर में सुख शांति बनी रहती है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है। इस साल 10 अक्टूबर 2023 को है इंदिरा एकादशी।
यहां इंदिरा एकादशी व्रत कथा
सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का राजा हुआ करता था। राजा विष्णु जी का परम भक्त था। एक दिन राजा की सभा में महर्षि नारद आए। राजा उन्हें देखकर प्रसन्न हुए और उन्होंने हाथ जोड़कर उनका सम्मान किया। इस दौरान मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तो राजा ने जवाब दिया कि आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है। इसके बाद राजा ने ऋषि से पूछा कि आप यहां आने का कारण बताइये? तो ऋषि ने कहा कि मैं यमलोक गया था,वहां मैंने यमराज की सभा में तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा।
तुम्हारे पिता बहुत दुखी थे, उन्होंने तुम्हारे लिए संदेशा भेजा है कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ। पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। तभी राजा ने महर्षि से इस व्रत की विधि के बारे में पूछा। नारदजी ने बताया कि आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें।
फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लें। राजा ने बिलकुल ऐसा ही किया, जिससे उनके पिता को विष्णुलोक प्राप्त हुआ। तभी से इस व्रत को रखा जाता है।
| Tweet |