मुद्दा : वैश्विक गर्मी का चरम
इस बार वैश्विक गर्मी चरम पर है। विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार बीते वर्ष और पिछले दशक ने धरती पर आग बरसाने का काम किया है।
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अमेरिका की पर्यावरण संस्था वैश्विक विटनेस और कोलंबिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि तेल और गैस के अधिकतम मात्रा में उत्पादन से ये हालात पैदा हुए हैं। यदि इन ईधनों के उत्सर्जन का यही हाल रहा तो 2050 तक गर्मी चरम पर होगी।
गर्मी से जीव-जगत की क्या स्थिति होगी? अनुमान लगाना भी मुश्किल है। बढ़ते वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। इसीलिए कहा जा रहा है कि धरती पर पल्रय बाढ़ से नहीं, आसमान से बरसती आग से आएगी। धरती के जीव-जगत पर करीब तीन दशक से जलवायु परिवर्तन के वर्तमान और भविष्य में होने वाले संकटों की तलवार लटकी हुई है। संकट से निपटने के उपायों को तलाशने के लिए 198 देश जलवायु सम्मेलन करते हैं। इन सम्मेलनों का प्रमुख लक्ष्य रहा है कि दुनिया उस रास्ते पर लौटे, जिससे बढ़ते वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक स्थिर रखा जा सके लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे स्पष्ट है कि कुछ सालों के भीतर गर्मी तापमान की इस सीमा का उल्लंघन कर लेगी क्योंकि इस बार तीन सप्ताह से लगातार गर्मी का तापमान 40 से 55 डिग्री तक बना रहा। दिल्ली में तापमान 52.9 डिगी तक पहुंच चुका है। सऊदी अरब में भीषण गर्मी के चलते 1000 से ज्यादा हज यात्रियों की मौत हुई है।
इस कदर गर्मी का अनुमान पर्यावरणविद् ने पहले से लगा लिया था। इनकी सलाह पर 100 से ज्यादा देश 2030 तक दुनिया की नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को बढ़ाकर तीन गुना करने के प्रयास में जुटे हैं। इसके अंतर्गत अक्षय ऊर्जा के प्रमुख स्रेत सूर्य, हवा और पानी से बिजली बनाने के उपाय सुझाए गए हैं। पर्यावरणविद् के मुताबिक, सदी के अंत तक पृथ्वी की गर्मी 2.7 प्रतिशत बढ़ जाएगी। नतीजतन, पृथ्वीवासियों को तबाही का सामना करना पड़ेगा।
इस मानव निर्मिंत वैश्विक आपदा से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन, जिसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी/कॉप) के नाम से भी जाना जाता है, में पेरिस समझौते के तहत वायुमंडल का तापमान औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखने के प्रयास के प्रति भागीदार देशों ने वचनबद्धता भी जताई। लेकिन लंबे समय से चल रहे रूस और यूक्रेन तथा इस्रइल और फिलिस्तीन युद्ध के चलते नहीं लगता कि कार्बन उत्सर्जन पर नियंतण्र के लिए नवीकरणीय ऊर्जा को जो बढ़ावा दिया जा रहा है, वह स्थिर रह पाएगा क्योंकि जिन देशों ने वचनबद्धता निभाते हुए कोयला से ऊर्जा उत्सर्जन के जो संयंत्र बंद कर दिए थे, उनमें से कई रूस ने चालू कर लिए हैं।
नवम्बर, 2021 में ग्लासगो वैश्विक सम्मेलन में तय हुआ था कि 2030 तक विकसित देश और 2040 तक विकासशील देश ऊर्जा उत्पादन में कोयले का प्रयोग बंद कर देंगे यानी 2040 के बाद थर्मल पावर अर्थात ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले से बिजली का उत्पादन पूरी तरह बंद हो जाएगा। तब भारत-चीन ने पूरी तरह कोयले पर बिजली उत्पादन पर असहमति जताई थी, लेकिन 40 देशों ने कोयले से पल्ला झाड़ लेने का भरोसा दिया था। 20 देशों ने विश्वास जताया था कि 2022 के अंत तक कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों को बंद कर दिया जाएगा परंतु उपरोक्त युद्धों के चलते अनेक देशों ने अपने थर्मल पावर बंद नहीं किए हैं।
बदलते हालात में हमें जिंदा रहना है तो जिंदगी जीने की शैली को भी बदलना होगा। तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है तो कार्बन उत्सर्जन में 43 प्रतिशत कमी लानी होगी। आईपीसीसी ने 1850-1900 की अवधि को पूर्व औद्योगिक वर्ष के रूप में रेखांकित किया है। इसे ही बढ़ते औसत वैश्विक तापमान की तुलना के आधार के रूप में लिया जाता है।
गोया, कार्बन उत्सर्जन की दर नहीं घटी और तापमान में 1.5 डिग्री से ऊपर चला जाता है तो असमय अकाल, सूखा, बाढ़ और जंगल में आग की घटनाओं का सामना निरंतर करते रहना पड़ेगा। बढ़ते तापमान का असर केवल धरती पर होगा, ऐसा नहीं है। समुद्र का तापमान भी बढ़ेगा और कई शहरों के अस्तित्व के लिए समुद्र संकट बन जाएगा। दुनिया में बढ़ती कारें भी गर्मी बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण बनती जा रही हैं। 2024 में वैश्विक स्तर पर कारों की संख्या 1.475 बिलियन आंकी जा रही है या प्रत्येक 5.5 व्यक्ति पर एक कार है, जो प्रदूषण फैलाने का काम कर रही हैं। इन पर भी नियंतण्र जरूरी है।
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