मीडिया : ‘बदला टूरिज्म’ और मीडिया
मसूरी, शिमला, नैनीतील, मनाली और कश्मीर की डल झील में जुटी टूरिस्टों की बेशुमार भीड़ों को कवर करते हुए अधिकतर खबर चैनल पहले भीड़ों को दिखाते हैं।
मीडिया : ‘बदला टूरिज्म’ और मीडिया |
फिर बताते हैं कि देखिए ये मास्क नहीं पहन रहे, न एक दूसरे से सोशल दूरी बना रहे हैं। बल्कि मसूरी के केम्प्टी फॉल का सीन तो ऐसा है कि कोरोना न फैले तो फैले और रिपोर्टर व एंकर बार-बार चेताते हैं कि तीसरी लहर आती है तो उसके जिम्मेदार यही लोग होंगे। एक रिपोर्टर केम्पटी फॉल के पानी में हल्ला मचाते लोगों को देख कहता है कि देखिए, इतनी भीड़ है और कोई मास्क नहीं लगा रहा।
ऐसे ही एक रिपोर्टर नैनीताल में मौज करते कुछ युवकों से पूछता है कि आपने मास्क क्यों नहीं पहना, तो वे इठलाते हुए कहते हैं कि हम नहीं पहनते और हंसते हुए आगे निकल जाते हैं। शिमला, मसूरी, नैनीताल, मनाली के सीनोें में खूब भीड़ नजर आती है। हरिद्वार के बाजारों तक में भीड़ नजर आती है और रिपोर्टर इनको दिखाते हुए टिप्पणी करते रहते हैं कि यहां भी कोई मास्क नहीं पहन रहा है, न एक दूसरे से जरूरी दूरी रख रहा है। ऐसी भीड़ कोरोना की तीसरी लहर का खतरा पैदा कर सकती है। ‘डल लेक’ से एक रिपोर्टर कहता है कि एक ही शिकारे में बहुत से लोग पास पास बैठे हैं लेकिन किसी ने मास्क नहीं लगाया। ये कोरोना के वाहक बन सकते हैं। हिमाचल सरकार ने ऐसी भीड़ों का नोटिस लेते हुए मास्क न पहनने वालों को दंडित करने का आदेश निकाला है, जो टूरिस्टों को चेताता है कि जो मास्क नहीं पहनते और जरूरी दूरी नहीं रखते तो उनको आठ दिन की जेल हो सकती है। चैनलों की चिंता जायज है। कोरोना एक्सपर्ट बार-बार मीडिया में आकर बताते रहते हैं कि तीसरी लहर आसकती है जबकि दूसरी लहर तक अभी ठंडी नहीं हुई है। सिर्फ केरल और महाराष्ट्र पचास फीसदी से ज्यादा केस दे रहे हैं।
दैनिक कोरोना संक्रमितों की संख्या चालीस हजार से कम नहीं हो रही है, और यूरोप के कई देशों में केस बढ़ने लगे हैं। जाहिर है कि इस तरह की अवारा भीड़ें संक्रमण का खतरा तो पैदा करती हैं, लेकिन यहां हमारा विषय कोरोना की तीसरी लहर की संभावना न होकर वह ‘विशेषण’ है, जो इन ‘टूरिस्टों की भीड़ों’ को मीडिया ने दिया है। यह है ‘रिवेंज टूरिज्म’ यानी ‘बदले की भावना से किया जाता टूरिज्म’। कई चैनल इसे टूरिज्म को ‘रिवेंज टूरिज्म’ का नाम देते हैं। कुछ एक्सपर्ट इसे ‘रिवेंज ट्रेवल’ कहते हैं। ऐसे लोग मानते हैं कि लंबे ‘लाकडॉउन’ में बंद रहने के बाद खाता-पीता संपन्न मिडिल क्लास अपनी थकान उतारने के लिए इतनी बड़ी संख्या में निकल कर आवारा हो जाता है। यह उसकी ‘बदला लेने की भावना’ है। इसमें कुछ भी हिसंक नहीं है।
हमारी समस्या यही ‘विशेषण’ है जो ‘दोहरे’ अर्थ वाला है। एक ओर मीडिया इन संपन्न टूरिस्टों की ‘लल्लो चप्पो’ करते हुए इनको ‘कोरोना और लॉकडाउन’ से बदला लेने वाला हीरो बताता है तो दूसरी ओर चिंता करता है कि कहीं ये कोरोना न फैला दें। ‘बदला’ विशेषण ऊपर से नकारात्मक दिखता है, लेकिन असल में यह ‘बदला टूरिस्ट’ को ‘हीरो’ की तरह पेश करता है। यही कारण है कि अपने प्रिंट मीडिया में ऐसी टिप्पणियां भी दिखती हैं, जो इस ‘बदला टूरिज्म’ को ‘टूरिस्ट इंडस्ट्री’ के लिए ‘फायदेमंद’ मानती हैं। स्पष्ट है कि ‘रिवेंज टूरिस्ट’ शब्द ‘टूरिस्ट इंडस्ट्री’ का ही बनाया हुआ हैं क्योंकि इस तरह के ‘बदलेखोरी के भाव’ से ‘टूरिस्ट इंडस्ट्री’ के खजाने भरते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि ‘रिवेंज टूरिज्म’ सिर्फ उच्च मध्यवर्ग की ‘विलंबित अय्याशी’ का ही दूसरा नाम है वरना कोरोना ने तो सभी को अपनी चपेट में लिया है, और लॉकडाउन की पीड़ा सभी ने झेली है, और सभी चाहते हैं कि पहले की तरह का जीवन जिएं। लेकिन रोज की खरीदारी के लिए बाजार में निकलने वाले आम आदमी को मीडिया ‘रिवेंज शॉपर’ नहीं कहता बल्कि उसे ‘अपराधी’ की तरह दिखाता है जबकि इस ‘रिवेंज टूरिस्ट’ को ‘बदला लेने वाले हीरो’ की तरह पेश करता है।
आम आदमी की भीड़ को मीडिया ‘लापरवाह भीड़’ कहता है। इस भीड़ पर कहीं किसी पुलिस ने डंडे बरसाए हैं, कहीं किसी से ‘डंड बैठक’ करवाई है, और किसी का सिर तक मुंड़वा दिया है। लेकिन उनको किसी ने ‘रिवेंज शॉपर’ या ‘सैलानी’ नहीं कहा। कोरेाना के ‘डर’ और ‘लॉकडाउन’ के ‘दमन और पीड़ा’ इन्होंने कम नहीं झेला। लेकिन इनके पास इतना पैसा नहीं था और न हैं कि वे अपनी गाड़ी से हिलस्टेशन जाते और वहा होटल बुक कर मस्ती करते और टूरिस्ट इंडस्ट्री की तिजौरी भरते। मीडिया भी ‘टूरिस्ट’ और ‘टूूरिस्ट’ में फर्क करता है।
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