फिशिंग : इस फर्जीवाड़े से कैसे बचें?

Last Updated 20 Jan 2021 02:02:26 AM IST

कौन होगा, जिसे नासा-इसरो जैसे अंतरिक्ष संगठन या हार्वर्ड-कैम्ब्रिज जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालय बुलाएं और वह न जाए?


फिशिंग : इस फर्जीवाड़े से कैसे बचें?

बल्कि ऐसा हो सकता है कि नामी संस्थान भले कोई न्योता न दे, पर कोई यह ढिंढोरा पीट सकता है कि फलां संस्थान ने करोड़ों की नौकरी या कुछ और नहीं तो व्याख्यान के लिए बुलावा भेजा है। ऐसा करने से प्रतिष्ठा बढ़ती है, जग में नाम होता। पर मुमकिन यह भी है कि कोई संस्थान असलियत में न बुलाए, लेकिन बुलावे का फर्जीवाड़ा हो और उसे सच मान लिया जाए।
दावा है कि इधर एक टीवी चैनल की एक नामी पत्रकार के साथ ऐसा ही हुआ। दुनिया के अति-प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से पत्रकारिता के प्रोफेसर की नौकरी के लिए एक फर्जी बुलावा-पत्र उन्हें मिला और वे उसकी असलियत जांचे बगैर झांसे में आ गई। यही नहीं, उन्होंने अपनी दो दशक पुरानी नौकरी छोड़ दी और विविद्यालय में पढ़ाने की तैयारी करने लगीं, लेकिन बाद में विविद्यालय से हुए पत्राचार (ईमेल आदि) में स्थिति साफ हुई।

पता चला कि उनके साथ एक सुनियोजित तरीके से ऑनलाइन धोखाधड़ी हुई है। पूर्व पत्रकार की इसके लिए सराहना करनी होगी कि उन्होंने पूरी ईमानदारी से यह खुलासा किया कि पत्रकार होने के बावजूद वे खुद बेहद प्रतिष्ठित नौकरी के बुलावे में कोई खोट नहीं पकड़ पाई और गच्चा खा गई। हालांकि सोशल मीडिया पर यह कहकर उनकी आलोचना करने वालों की कमी नहीं है कि हार्वर्ड का ढोल पीटने के पीछे उनकी मंशा कुछ और तो नहीं थी। करीब पांच साल पहले मध्य प्रदेश के देवास जिले में 12वीं पास एक ऐसे नौजवान को पुलिस ने पकड़ा था, जो खुद को अमेरिकी स्पेस एजेंसी-नासा का वैज्ञानिक बताता फिर रहा था।

उसके पास अपनी बात साबित करने के लिए एक आई-कार्ड था, जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के दस्तखत थे। युवक का दावा था कि नासा ने उसे स्पेस एंड फूड कार्यक्रम के लिए सालाना 1.85 करोड़ के पैकेज पर नौकरी दी है और वह जल्द ही नौकरी ज्वाइन करने के लिए अमेरिका जाने वाला है। लोग अंसार खान नामक इस युवक की उपलब्धि पर गदगद थे। कई स्थानीय संगठनों और खुद उसके स्कूल ने उसे सम्मानित किया था। अमेरिका जाने के खर्च के नाम पर उसने तमाम लोगों से पैसे उधार ले लिये थे, लेकिन एक सम्मान कार्यक्रम के लिए देवास के एसपी को न्योता देना अंसार को भारी पड़ गया। एसपी ने नकली आईकार्ड पहचान कर उसकी पोल खोल दी। हाल में इसके उलट एक मामला ओडिशा में पकड़ में आया है।

बेहद गरीब परिवार के नौंवी कक्षा के प्रतिभाशाली छात्र सुभ्रांशु नायक को नासा की ओर से भेजा गया एक ईमेल मिला, जिसमें उसे ‘माविक ड्रोन प्रोजेक्ट’ नामक अविष्कार के लिए नासा मुख्यालय में आयोजित होने वाली एक प्रतियोगिता में उसके चयन की जानकारी दी गई। यह ईमेल मिलने से परिवार में जश्न का माहौल था, छात्र ने इस दौरान ईमेल के निर्देशों के मुताबिक नासा की एक कथित वेबसाइट पर अपने प्रोजेक्ट की जानकारियां अपलोड कर दी थीं, लेकिन शुरुआती जांच-पड़ताल में ही पता चल गया कि वह ईमेल फर्जी था। अब मामला साइबर सेल के हवाले है। साइबर धोखाधड़ी इतनी बारीकी से की जा रही है कि कई बार असल और नकल का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। पर ज्यादा जरूरी मुद्दा यह है कि फिशिंग कहलाने वाले इस किस्म के फर्जीवाड़े से बचा कैसे जाए?

मीडिया से जुड़े लोगों के लिए पहला सबक यह निकलता है कि वे अविसनीय लगने वाली ऐसी सूचनाओं से जुड़े सभी पक्षों से सूचना का सत्यापन कराया जाए। जाहिर है, डेडलाइन और ब्रेकिंग न्यूज देने के दबावों में यह कायदा टूटता है। ऐसे में तथ्यों पर संदेह करने के दूसरे नियम की भी अनदेखी होती है।

सूचना कहां से आई; यह धीरज भी अब लोशल मीडिया के दबाव में शेष नहीं रह पाया है। फोन, ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट आदि जरियों से आने वाली सूचनाओं के फर्जीवाड़े से जो चीज बचा सकती है, वह है हर वक्त सतर्क रहने की आदत। इससे फर्क नहीं पड़ता कि मीडिया पर्सन हैं या आम लोग, यदि ईमेल या व्हाट्सऐप आदि से मिलने वाले वेब-लिंक्स को खोलने से पहले यह पुख्ता किया जाएगा कि उसे भेजने वाला स्रोत भरोसेमंद है या नहीं, फोन करने या ईमेल भेजने वाला शख्स या संगठन असली है या नहीं, तो धोखाधड़ी ज्यादातर कोशिशों का वहीं अंत हो जाता है। हां, अगर किसी की मंशा खुद इस बड़बोले फर्जीवाड़े का मजा लूटने की है, तो फिर इसके जाने-पहचाने अंजाम से परहेज कैसा?

डॉ. संजय वर्मा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment