पर्यावरण : अब अमृत नहीं रहा गंगा जल
बीते दिनों दो समाचार अखबारों की सुर्खियां बने। एक, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान, जिसमें उन्होंने गंगा आमंतण्रअभियान के सहभागियों के स्वागत समारोह में कहा था कि केंद्र सरकार के ’नमामि गंगे’ अभियान से गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता सुधरी है और अति महत्त्वपूर्ण नदियों में एक गंगा को स्वच्छ बनाने की परियोजना काफी सफल रही है।
पर्यावरण : अब अमृत नहीं रहा गंगा जल |
सरकार अन्य नदियों को साफ करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों के साथ मिलकर ऐसी ही पहल करेगी। दूसरा बयान उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से था। उसमें कहा गया था कि प्रदेश में साबरमती की तर्ज पर गंगा के तटों का सौंदर्यीकरण होगा।
जहां तक अमित शाह के बयान का सवाल है, असलियत यह है कि पुण्यसलिला नदी के रूप में जानी जाने वाली नदी गंगा आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि प्रदूषण के चलते गंगा इतनी मैली हो गई है कि उसका जल आचमन करने लायक तक नहीं रहा। मरते दम हर भारतीय की अंतिम आकांक्षा रहती है कि उसके कंठ में गंगा जल की दो बूंदें ही डाल दी जाएं ताकि उसे मोक्ष प्राप्त हो सके। सच तो यह है कि आज गंगा जल पुण्य नहीं, बल्कि मौत का सबब बन गया है। इसका प्रमुख कारण है कि आज 2014 के मुकाबले गंगा बीस गुणा अधिक मैली है। गंगा जल के वैज्ञानिक परीक्षण इस तथ्य के जीते जागते सबूत हैं। 2014 के लोक सभा चुनाव की शुरुआत में राजग के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने बनारस में नामांकन के समय घोषणा की थी कि मां गंगा ने मुझे बुलाया है। गंगा की शुद्धि उनका पहला लक्ष्य है। वह बनारस से भारी मतों से जीते और देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने गंगा की शुद्धि के लिए नमामि गंगे नामक परियोजना शुरू की। इसकी सफलता का जिम्मा केंद्र के सात मंत्रालयों को सौंपा गया। एक अलग मंत्रालय भी बनाया गया। दावा किया कि गंगा सफाई का परिणाम अक्टूबर, 2016 से दिखने लगेगा। उसके बाद से समय-समय पर गंगा सफाई के बारे में दावे-दर-दावे किए जाते रहे। लेकिन आज भी अपने ताड़नहार की प्रतीक्षा में है। देश के गंगाप्रेमी सोचने पर विवश हैं कि क्या गंगा साफ होगी?
विडम्बना देखिए कि विकसित देश पर्यावरण के लिए खतरा बन चुके बांधों को खत्म कर रहे हैं लेकिन हमारी सरकार गंगा को बिजली बनाने की खातिर सुरंगों में कैद कर बांध-दर-बांध बनाने पर तुली है। दुष्परिणाम यह हुआ कि गंगा जल का विशिष्ट गुण यानी गंगत्व यानी कभी खराब न होने वाली उसकी विशिष्टता खत्म होती जा रही है। गौरतलब है कि यह गंगत्व मानव आरोग्य के संरक्षक जीवाणुओं को बचाता है। इसे अंग्रेजी में ’बायोफाज’ तथा संस्कृत में ’ब्रह्मसत्व’ कहते हैं। इसका निर्माण हिमालय की वनस्पतियों एवं खनिजों यानी सफेद भवभूति से होता है। बांधों से यह गुण नष्ट होता है। यह सिल्ट के रूप में गंगा जल में घुलकर हिमालय से समुद्र तक जाता था। बांध बनने से पहले गंगा का जल अविरल-निर्मल था। बांध बनने पर यह सिल्ट नीचे बैठ जाती है। बंधे जल के ऊपर हरी-नीली रंग की काई यानी अल्गी बन जाती है। इससे ही गंगाजल दूषित होकर अपना विशिष्ट गुण खो देता है। उस दशा में गुणवत्ता का सवाल ही कहां पैदा होता है। इस बारे में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि गृह मंत्री का बयान झूठ के पुलिंदे के सिवाय कुछ नहीं है। गंगा की हालत में कोई सुधार नहीं आया है। सच तो यह है कि गंगा 2014 से और बीस गुणा मैली हो गई है। गंगा के प्रवाह में दिन-ब-दिन कमी आती जा रही है। ऐसी हालत में अविरलता की कल्पना बेमानी है। सबसे बड़ी वजह यह है कि गंगा की बीमारी कुछ और है और सरकार इलाज कुछ और ही कर रही है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की चेतावनी के बाद भी गंदे नाले गंगा में मिल रहे हैं, रिवर और सीवर को अलग करने की कोई कारगर पहल नहीं हुई है। जबकि पिछली सरकार ने एनजीबीआरटी की तीसरी बैठक में इसे सिद्धान्तत: स्वीकार कर लिया था। गंगा नदी की सफाई और प्रदूषणमुक्त करने के लिए 20 हजार करोड़ की योजना का ऐलान किया गया था, मगर हुआ क्या। गंगा की सहायक नदियों की प्रदूषण मुक्ति का दावा किया जाता है। लेकिन जब गंगा बदहाली के दौर में है तो सहायक नदियों का पुरसाहाल कौन है। प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस.स्वामीनाथन का कहना है कि-‘अनंतकाल से लेकर आज तक गंगा हिरण्यगर्भा, अमृतवाहिनी, त्रिपथगा, पतितपावनी आदि अनेक नामों से भारतीय वाड्मय में समाई हुई है। इस पर वेदों से लेकर आधुनिक युग तक अनेक रूपों में सामग्री उपलब्ध है। यदि कहें कि गंगा की पौराणिकता व पवित्रता की तुलना संसार की किसी भी नदी से नहीं की जा सकती तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। भारतीय मनुष्य को भौतिक उत्कर्ष तक पहुंचाने का काम इसी सरिता के तट से हुआ है। इतिहास की विडम्बना ही समझिए कि कालांतर में यह आध्यात्मिक केंद्रों को महत्त्व देने वाली तो रही है परन्तु आधुनिक समय में इसे प्रदूषण का शिकार होना पड़ा है। वह जलधारा जो जीवन को सिंचित और पल्लवित करती रही है, अब एक विकट, रोग प्रसारी, प्रदूषित जलकोष बनकर रह गई है।’ यह गंगा की वास्तविकता का जीवंत प्रमाण है।
| Tweet |