अलगाववाद रोकने के एजेंडे पर
तीस्ता नदी जल बंटवारे पर भारत-बांग्लादेश की प्रस्तावित संधि से क्षुब्ध पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ढाका की अपनी रवानगी स्थगित कर दी है.
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ममता का आरोप है कि इस संधि से बंगाल के लोग पानी के लिए तरस जाएंगे. हालांकि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन को पहले ढाका और फिर पश्चिम बंगाल भेजकर ममता बनर्जी की शंकाओं को दूर करने की कोशिश की थी. वहीं तीस्ता जल बंटवारे पर बांग्लादेश की विपक्ष की नेता बेगम खालिदा जिया भी अपनी सरकार को भारत की समर्थक बता कर उसे घेरती रही हैं.
ममता की नाराजगी से तीस्ता पर फोकस भले हो गया हो मनमोहन और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच द्विपक्षीय वार्ता में सीमावत्र्ती इलाकों की अलगाववादी हिंसा रोकने का एजेंडा ही सबसे महत्त्वपूर्ण है. इसलिए यह पहला अवसर है कि प्रधानमंत्री के साथ पूर्वोत्तर के छह मुख्यमंत्री भी ढाका जा रहे हैं. हसीना के सहयोग का प्रतिफल है कि उत्तर-पूर्व के सबसे खूंखार और मजबूत अलगाववादी गुट युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के बांग्लादेशी अड्डे ध्वस्त किए जा सके. अब उसे वार्ता की मेज पर भी लाया जा सका है.
सिर्फ हिंसा की बदौलत 'स्वतंत्र स्वाधीन असोम' की मांग करने वाले उल्फा के चेयरमैन अरविंद राजखोवा समेत कई कमांडरों को बांग्लादेश सरकार ने भारत के हवाले किया. एक और टॉप उल्फा कमांडर अनूप चेतिया अभी ढाका जेल में हैं, जिसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बांग्लादेश पहुंचने से पहले रिहा करने की बात थी. संभव है, अब प्रधानमंत्री के लौटने के बाद उसे छोड़ा जाए. उल्फा से असम सरकार की तीसरे दौर की बातचीत मुख्यमंत्री तरुण गगोई ढाका रवाना होने के पहले तीन सितम्बर को कर चुके हैं, जिसमें सहमति का आधार बना है.
प्रधानमंत्री के बांग्लादेश दौरे को सफल बनाने के लिए भारत की तरफ से काफी कोशिशें हुई हैं. गृहमंत्री पी चिदम्बरम दो बार ढाका जा चुके हैं तो हफ्ते भर पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन वहां से हो आए हैं. शेख हसीना के आर्थिक मामलों के सलाहकार मतीउर्रहमान और अंतरराष्ट्रीय मामलों के सलाहकार जौहर रिजवी दोनों से ही उनकी बातचीत मुख्य रूप से सीमावर्ती अपराधों की रोकथाम पर केंद्रित थी. मेनन इस बारे में भी ममता को ब्रीफ किया था.
पूर्वोत्तर की तरह उत्तरी बंगाल की बांग्लादेश से लगी सीमा भी व्यापारिक से ज्यादा बांग्लादेशी उकसावे पर उपद्रवी गतिविधियों का अड्डा बना हुआ है, जिसका लिंक सबसे ज्यादा उग्रवाद पीड़ित असम से है. इसलिए ममता बनर्जी ने 172 करोड़ की लागत से बननेवाले सीमावर्ती चेकपोस्ट की आधारशिला गृहमंत्री पी. चिदम्बरम से रखवाई. बांग्लादेश की गृहमंत्री सहारा खातून भी इस मौके पर आई थीं. दरअसल, उग्रवादी हिंसा के साथ-साथ बांग्लादेशी घुसपैठियों ने असम और पश्चिम बंगाल में तो आबादी का सामाजिक व आर्थिक संतुलन भी बिगाड़ दिया है. इसी के चलते 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु भी ढाका गए थे.
1980 के दशक में असम का छात्र-आंदोलन इसी मुद्दे को लेकर शुरू हुआ था और प्रफुल्ल महंत की अगुवाई में असम गण परिषद की सरकार बनी थी. आज विपक्ष के नेता के रूप में यही महंत ढाका जा रहे तरुण गगोई को चेतावनी दे रहे हैं कि असम की संप्रभुता के साथ कोई समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उनका इशारा असम की उस जमीन की ओर है, जो घुसपैठियों की बदौलत बांग्लादेश के कब्जे में है.
भारत और बांग्लादेश दोनों ही देशों की सरकारों का 4156 किलोमीटर विवादास्पद संयुक्त सीमा की ओर इस बार ध्यान ज्यादा है, जो खून-खराबा करनेवाले गुटों की आवाजाही का जरिया बना हुआ है. इससे संबंधित कुछ समझौते तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पहुंचने से पहले हो चुके हैं.
इसके अलावा मनमोहन सिंह के जाने से पहले भारत-बांग्लादेश रेल संपर्क परियोजना 'मैत्रोयी एक्सप्रेस' तैयार है. त्रिपुरा की राजधानी अगरतला को बांग्लादेश के अखौरा भाया गंगासागर से जोड़नेवाली 14 किलोमीटर रेल पटरी के लिए रेलवे बोर्ड ने 251 करोड़ की परियोजना को जून में अंतिम रूप दे दिया है.
बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी की नेता बेगम खालिदा जिया ने अपनी पार्टी की पुरानी नीति नहीं छोड़ी है और मनमोहन सिंह के ढाका पहुंचने से पहले ही देश की जनता को यह इंप्रेशन देने का प्रयास किया कि शेख हसीना ने कुछ गुप्त समझौते भारत के दबाव में किए हैं.
इसलिए उन्होंने एक बयान जारी कर अपनी सरकार से कहा कि भारत से हुए या होने वाले सारे समझौते सार्वजनिक किए जाएं. भारत-बांग्लादेश जल-सीमा को जोड़नेवाली तीस्ता और फेणी नदियों के जल-बंटवारे से संबंधित विवाद में अड़ंगे का आरोप भारत पर मढ़कर बेगम खालिदा बांग्लादेश की बाढ़ तथा सुखाड़ दोनों ही के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराती रही है.
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